कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रु के एक हजार सर्पों में शेषनाग की तरह ही वासुकि नाग भी था।
Dharm : कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रु के एक हजार सर्पों में शेषनाग की तरह ही वासुकि नाग भी था। उसे भी मां का शाप सुन कर चिंता हुई तो विचार करने लगा कि मां के शाप से कैसे मुक्त हुआ जा सकता है। इसी चिंता में उसने अपने सभी भाइयों की एक मीटिंग बुलाई और बोला, भाइयों, आप सभी लोग माता के शाप से परिचित हैं, अब हम लोगों को मिल कर उस शाप के निवारण का उपाय तलाशना चाहिए। यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि हर तरह के शाप से निवारण के उपाय होते हैं किंतु मां के शाप का उपाय होता ही नहीं है। अब हम लोगों समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए और कठिन समय आने के पहले ही उपाय ढूंढ लेना चाहिए जैसे बारिश के पहले छप्पर को छा दिया जाता है।
सर्पों ने दिए ऊटपटांग सुझाव
सभा में उपस्थित नागों में से कुछ ने कहा, हम लोग ब्राह्मण बन कर राजा जममेजय के यज्ञ में जाएंगे और उनसे भिक्षा मांगेंगे कि तुम यज्ञ ना करो। कुछ लोगों का सुझाव था, हम मंत्री बन कर जाएं और ऐसी सलाह दें जिससे यज्ञ ही न हो। कोई बोला, हम गुपचुप तरीके से जा कर उनके पुरोहित को ही डस लें, उसके मरते ही यज्ञ रुक जाएगा। इस पर धर्मात्मा और अच्छे विचार वाले सर्प बोले, नहीं ऐसा करने से तो ब्रह्म हत्या का दोष लगेगा। विपत्ति के समय हमेशा धर्म का रास्ता ही अपनाना चाहिए क्योंकि उसी से उद्धार हो सकता है। अधर्म का रास्ता अपनाया तो पूरे संसार का नाश हो जाएगा। इसी बीच कुछ नागों ने सुझाव दिया, हम लोग वहां जा कर हवन सामग्री ही चुरा लाएं तो कुछ बोले, हम लोग यज्ञ में उपस्थित होने वाले हजारों लोगों को ही डस लें।
वासुकि पर छोड़ा सारा मामला
अंत में सबने नागराज वासुकि पर मामला डालते हुए कहा, हम लोग तो जो सोच सकते थे, सब कह दिया अब तुम ही कोई उपाय निकालो। ऐसा होने पर वासुकि ने कहा, हमें तुम लोगों का कोई भी विचार नहीं जंचा। इनमें व्यवहारिकता तनिक भी नहीं है। अब हम सबको मिल कर अपने पिता महात्मा कश्यप के पास जाना चाहिए और वो जो भी सुझाव दें उसे सहर्ष मान लेना चाहिए। सबसे बड़ा होने के कारण अच्छा या बुराई मेरे नाम ही होगी।