Jaratkaru Rishi : एलापत्र नाग ने देवताओं और ब्रह्मा जी के संवाद से निकाला सर्पों के बचाव का मार्ग, आखिर जरत्कारु ऋषि कौन थे जिनकी खोज में निकले सभी सर्प

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महर्षि कश्यप और कद्रु के एक हजार सर्प पुत्रों में शेषनाग और वासुकि की तरह ही एक और था एलापत्र नामक नाग।

Jaratkaru Rishi : महर्षि कश्यप और कद्रु के एक हजार सर्प पुत्रों में शेषनाग और वासुकि की तरह ही एक और था एलापत्र नामक नाग। उसने अन्य भाइयों के साथ ही सबसे बड़े भाई वासुकि के सुझाव को ध्यान से सुनने के बाद कहा, भाइयों, आप लोग व्यर्थ ही सब बातें कह रहे हैं क्योंकि न तो यज्ञ रुकने वाला है और न ही राजा जनमेजय मानने वाला है। हम लोगों को सारी बातें भविष्य और भाग्य पर छोड़ देना चाहिए, अपराध का दंड तो मिलता ही है।   

ब्रह्मा जी ने भी सर्पों के अंत की इच्छा जताई 

एलापत्र ने सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते हुए कहा मैं एक रहस्य की बात बताता हूं जिसे सभी लोग मन लगा कर सुनें और उसके बाद ही किसी तरह का निर्णय करें। जिस समय माता ने हम लोगों को उनके छल में साथ न देने पर शाप दिया था, मैं डर कर उनकी गोद में बैठ गया था। इतना कठोर शाप सुनकर देवता ब्रह्मा जी के पास गए और कहा, भगवन ऐसी कौन सी महिला होगी जो अपने ही पुत्रों को शाप दे। तब स्वयं आपने भी उसके शाप पर मुहर लगायी, इसका क्या कारण है। इस पर ब्रह्मा जी बोले, इस समय संसार में सर्प बहुत बढ़ गए हैं। प्रजा के हित में मैं स्वयं भी उनका अंत चाहता था इसलिए कद्रु को नहीं रोका। इस शाप से पापी जहरीले और तुच्छ विचारों वाले सर्पों का ही अंत होगा। धर्मात्मा सर्प सुरक्षित रहेंगे। 

ब्रह्मा जी ने ही उस समय एक और बात बतायी थी जिसके अनुसार यायावर वंश में जरत्कारु नाम के एक ऋषि होंगे

ब्रह्मा ने ही बताया धार्मिक सर्पों की मुक्ति का मार्ग

ब्रह्मा जी ने ही उस समय एक और बात बतायी थी जिसके अनुसार यायावर वंश में जरत्कारु नाम के एक ऋषि होंगे। उनके पुत्र का नाम होगा आस्तीक जो जनमजेय का यज्ञ बंद कराने की क्षमता रखेगा तभी धार्मिक सर्पों का जल कर भस्म होने से छुटकारा मिल सकेगा। देवताओं ने और गहराई से जानना चाहा तो उन्होंने बताया, जरत्कारु ऋषि की पत्नी का नाम भी जरत्कारु ही होगा। जरत्कारु अर्थात जो व्यक्ति पहले हट्टा कट्टा था किंतु तप करने से शरीर जीर्ण-शीर्ण हो गया हो। जरत्कारु ऋषि की पत्नी जरत्कारु वासुकि नाग की बहन होगी जिसके गर्फ से आस्तीक का जन्म होगा। इस बातचीत के बाद सभी देवता अपने-अपने स्थान पर चले गए। इलापत्र ने इस किस्से को बताने के बाद कहा कि जिस समय ऋषि जरत्कारु भिक्षा में पत्नी की याचना करें, बहन को दे कर इस विपत्ति से बचने का मार्ग निकालना चाहिए। 

जरत्कारु ऋषि की खोज में निकले सर्प

एलापत्र की बात सुनकर सभी सर्पों ने प्रसन्नता व्यक्त की। वासुकि नाग भी उस दिन के बाद से अपनी बहन की प्रेम के साथ रक्षा करने लगे। इसके कुछ समय बात ही समुद्र मंथन हुआ तो नागराज वासुकि रस्सी बनने को राजी हुए किंतु देवताओं और उनके बीच का संवाद याद दिलाया जो एलापत्र ने बताया था। वासुकि ने अन्य सर्पों को जरत्कारु ऋषि की खोज में लगा कर निर्देश दिया कि उन पर नजर रखो और जब वे विवाह की इच्छा व्यक्त करें, तुरंत ही मुझे सूचित करो। अब हम लोगों के कल्याण का यही एक मात्र उपाय है।  

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