
Shakuntla Marriage : घने जंगल में महाराजा दुष्यंत की भेंट कण्व ऋषि के आश्रम में शकुन्तला से भेंट हुई तो वो उसकी वाणी और रूप पर मोहित हो गए। जब शकुन्तला ने उन्हें बताया कि वो तो कण्व ऋषि की पुत्री है तो उन्हें घोर आश्चर्य हुआ क्योंकि ऋषि के बारे में उन्हें पता था कि वे तो अखंड ब्रह्मचारी हैं।
कैसे पड़ा शकुन्तला नाम
राजा ने शकुन्तला से अपने इस आश्चर्य के बारे में पूछा तो उसने बहुत ही सहजता से उत्तर दिया कि एक बार एक दूसरे ऋषि ने मेरे बारे में प्रश्न किया था तो उन्होंने मेरे जन्म की कहानी बतायी थी। उसके अनुसार जिस समय परम प्रतापी विश्वामित्र जी तपस्या कर रहे थे, उस समय इंद्र ने उनके तप में विघ्न डालने के लिए मेनका नाम की अप्सरा को भेजा. उसी के संयोग से मेरा जन्म हुआ लेकिन माता मुझे वन में छोड़ कर चली गयीं तभी पक्षियों जिन्हें शकुन्त भी कहा जाता है, ने शेर चीता आदि भयानक पशुओं से मेरी रक्षा की। महर्षि कण्व ही मुझे उठा कर अपने आश्रम ले आए और मेरा पालन पोषण किया। शरीर के जनक, प्राणों के रक्षक और अन्नदाता तीनों ही पिता कहे जाते हैं। इस तरह मैं ऋषि कण्व की पुत्री हुईं और शकुन्तों द्वारा रक्षा किए जाने के कारण मेरा नाम शकुन्तला पड़ा।
