शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी एक दिन शर्मिष्ठा व अन्य दासियों के साथ उसी जंगल में घूमने गयी जहां पर दोनों का विवाद हुआ था।
Marriage of Devyani : शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी एक दिन शर्मिष्ठा व अन्य दासियों के साथ उसी जंगल में घूमने गयी जहां पर दोनों का विवाद हुआ था। इसी बीच वहां पर राजा ययाति निकले जो प्यासे भी थे। उन्होंने देवयानी और शर्मिष्ठा को तमाम युवतियों को बैठे देखा तो जिज्ञासा वश पूछ लिया कि आप दोनों कौन हैं। देवयानी ने उत्तर दिया कि मैं दैत्यगुरु शुक्राचार्य की पुत्री हूं और यह दासी सखी शर्मिष्ठा है जो असुरराज वृषपर्वा की पुत्री है।
देवयानी ने रखा विवाह का प्रस्ताव
देवयानी ने दासियों सहित अपने को राजा ययाति के समक्ष समर्पित करते हुए कहा, मैं आपको अपने सखा और स्वामी के रूप में स्वीकार करती हूं। आप भी मुझे स्वीकार करें, इससे आपका कल्याण होगा। ययाति ने कहा, हे शुक्रनन्दिनी ! मैं तुम्हारे योग्य नहीं हूं। तुम्हारे पिता किसी क्षत्रिय के साथ तुम्हारा विवाह नहीं कर सकते। देवयानी ने उत्तर दिया, हे राजन ! कुएं से निकालते समय आपने ही मेरा हाथ पकड़ा था और आपसे पहले किसी भी पुरुष ने मेरा हाथ नहीं पकड़ा था। इसलिए मैं आपका वरण करती हूं, अब भला कोई दूसरा पुरुष मेरा हाथ कैसे पकड़ सकता है। ययाति ने साफ कहा कि जब तक तुम्हारे पिता स्वयं तुम्हें मेरे हाथों में नहीं सौंपते हैं, मैं तुम्हें कैसे स्वीकार कर सकता हूं।
देवयानी ने अपने पिता को बुलवाया
इसके बाद देवयानी ने अपनी दासी से पिता के पास संदेश भेजा तो वे तुरंत ही उस स्थान पर आ गए। ययाति ने उन्हें प्रणाम किया और हाथ जोड़ कर उनके सामने खड़े हो गए। देवयानी ने परिचय कराते हुए कहा, पिताश्री, ये नहुषनन्दन राजा ययाति हैं। जब मैं कुएं में गिरा दी गयी थी तो इन्हीं ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बाहर निकाला था। मैं आपके चरणों में पड़कर नम्रता पूर्वक निवेदन करती हूं कि आप इनके साथ मेरा विवाह करा दीजिए।
शुक्राचार्य ने किया कन्यादान, दी सीख
शुक्राचार्य ने ययाति से कहा, राजन ! मेरी लाड़ली पुत्री ने पतिरूप में आपका वरण किया है इसलिए मैं कन्यादान करता हूं। आप इसे पटरानी के रूप में स्वीकार करें। ययाति ने कहा, भगवन आप ब्राह्मण और मैं क्षत्रिय हूं। ब्राह्मण कन्या के साथ विवाह करने पर मुझे वर्णसंकर का दोष लगेगा। आप ऐसा वर दीजिए कि यह दोष मिट जाए। दैत्यगुरु ने आशीर्वाद देते हुए कहा, तुम इस संबंध को स्वीकार करो और किसी भी दोष की चिंता मत करो, मैं उसे मिटाए देता हूं। तुम मेरी पुत्री को पत्नी के रूप में स्वीकार कर सुख भोगो। बेटा ! तुम वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा का भी उचित सम्मान करना किंतु उस कभी भी अपनी सेज पर न बुलाना। इसके बाद शास्त्रोक्त विधि से दोनों का विवाह कर दिया गया और राजा ययाति देवयानी को लेकर अपनी राजधानी को चले गए।