Lord Brahma : ब्रह्मा जी के दरबार में गंगा के अचानक उपस्थित होने से, ऐसा क्या हुआ जिसकी वजह से राजर्षि महाभिष को मिला शाप, जानिए फिर कहां हुआ उनका जन्म 

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Lord Brahma : वैशम्पायन ऋषि ने राजा जनमेजय को महाभारत की कथा बताते हुए उनके पूर्वज राजा शांतनु के जन्म और विवाह का रोचक प्रसंग सुनाते हुए पहले के सारे प्रसंग विस्तार से सुनाए। उन्होंने कहा इच्छवाकु वंश में महाभिष नाम के सत्यनिष्ठ और महा पराक्रमी राजा हुए, जिन्होंने बड़े-बड़े अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ कर स्वर्ग प्राप्त कर लिया। स्वर्ग में रहते हुए एक दिन बहुत से देवता और महाभिष सहित राजर्षि ब्रह्मा जी के दरबार में उपस्थित हुए। 

ब्रह्मा जी के दरबार में गंगा अचानक उपस्थिति

दरबार अभी शुरु ही हुआ था कि अचानक गंगा जी वहां पर उपस्थित हुईं। उसी समय तेज वायु चली जिसने उनके अंग के सफेद कपड़ों को हल्का सा खिसका दिया। ऐसा होने पर उपस्थित सभी देवता और राजर्षियों ने अपनी आंखें नीची कर लीं लेकिन महाभिष अपलक निःशंक उन्हें देखते रहे। इस दृश्य को देख कर ब्रह्मा जी नाराज हो गए और उन्होंने महाभिष को शाप देते हुए कहा कि तुमने अभी-अभी जो पाप किया है, उसे भोगने के लिए मृत्युलोक में जाओ। जिस गंगा को तुम देख रहे हो वही तुम्हारा अप्रिय करेगी और इसकी प्रतिक्रिया में जब तुम उस पर क्रोध करोगे तभी शाप से मुक्त हो पाओगे। 

ब्रह्मा जी और वशिष्ठ मुनि के शाप

ब्रह्मा जी के शाप को आज्ञा मान कर महाभिष ने शिरोधार्य कर निश्चय किया कि वे पुरुवंश के राजा प्रतीप के घर पर पुत्र के रूप में जन्म लें। इधर ब्रह्मलोक से लौटते समय गंगा जी की आठ वसुओं से भेंट हुई। वे भी वशिष्ठ मुनि के शाप से श्री हीन हो रहे थे। वशिष्ठ जी ने उन्हें शाप दिया था कि तुम लोग मनुष्य योनि में जन्म लो। भेंट होने पर वसुओं ने गंगा जी को आपबीती बतायी तो उन्होंने कहा कि ठीक है मैं तुम लोगों को अपने गर्भ में धारण करूंगी और जन्म लेते ही तत्काल मनुष्य योनि से मुक्त कर दूंगी। उन आठो वसुओं ने भी अपने अपने अष्टमांश से एक पुत्र मृत्युलोक में छोड़ देने की प्रतिज्ञा की और यह भी कहा कि यह कुपुत्र साबित होगा। 

पुरुवंश के राजा प्रतीप के पुत्र बने महाभिष

पुरुवंश के राजा प्रतीप अपनी पत्नी के साथ गंगा तट पर तपस्या कर रहे थे। एक दिन गंगा जी सुंदर रूप धर कर तपस्यारत राजा के पास आईं और पूछा, हे राजन आप इस तरह से सपत्नीक कौन सा तप कर रहे हैं और किस तरह के वरदान की आशा है। राजा ने उनसे कहा कि वे संतान प्राप्ति के लिए तप कर रहे हैं और आपसे आशा करते हैं कि मेरी संतान की आप पत्नी बनें। गंगा जी ने अपनी स्वीकृति दे दी। इधर राजा फिर से पत्नी के साथ तप में लीन हो गए। वृद्धावस्था में उनके यहां महाभिष ने पुत्र के रूप में जन्म लिया। उस समय राजा प्रतीप शांत हो रहे थे या यूं कहा जाए कि उनका वंश समाप्त होने वाला था। ऐसी अवस्था में पुत्र प्राप्त होने पर उसका नाम शांतनु पड़ा। शांतनु के जन्म लेते ही राजा प्रतीप की प्रसन्नता वापस लौट आई और उसके युवा होने पर राजा ने कहा कि एक दिन तुम्हारे पास दिव्य स्त्री पुत्र की अभिलाषा से आएगी। तुम उसकी न तो जांच पड़ताल करना और न ही उसके कार्यों पर कुछ कहना। इस उपदेश के साथ ही उन्होंने शांतनु को राजपाट सौंप दिया और स्वयं वन को चले गए। 

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