Dharam : शेषनाग ने क्यों छोड़ा अपने अन्य भाइयों का साथऔर करने लगे कठोर तप, कैसे प्रसन्न हुए ब्रह्मा और कौन सा वर दिया
Dharam : सर्पों की माता कद्रु ने अपनी सौतन विनता को दासी बनाने के लिए ही पुत्रों से कहा था कि आसमान में उड़ने वाले सफेद घोड़े की पूंछ पर इस तरह लिपट जाओ कि उसकी पूंछ काली दिखने लगे। हुआ भी ऐसा ही जिसके कारण विनता को दासी बनना पड़ा और गरुड़ ने जन्म के बाद मुक्त कराया। कद्रु के जिन सर्प पुत्रों ने अपनी मां के छल में साथ नहीं दिया, उन्हें उसने शाप दिया था कि तुम लोग जनमेजय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे.
सर्पों में एक था शेषनाग जिसने अपनी मां और अन्य भाइयों का साथ छोड़ कर कठिन तपस्या शुरु की
शेषनाग ने शुरु किया कठोर तप
सर्पों में एक था शेषनाग जिसने अपनी मां और अन्य भाइयों का साथ छोड़ कर कठिन तपस्या शुरु की। केवल हवा ही ग्रहण करते हुए भगवान का स्मरण करने लगे। इंद्रियों को अपने वश में करने के बाद शेषनाग गंधमादन, बद्रीकाश्रम, गोकर्ण और हिमालय आदि की तराई में एकांतवास करते हुए पवित्र धामों और तीर्थों की यात्रा करते रहे। तपस्या के कारण शेषनाग की खाल, मांस और नाड़ियां तक सूख गयी थीं। उनकी तपस्या, भक्ति और धैर्य देख कर ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए दर्शन देते हुए बोले, हे शेष, तुम्हारे इस घोर तप का क्या उद्देश्य है, बताओ तुम्हारी क्या इच्छा है, प्रजा का कोई उपकार क्यों नहीं कर रहे हो।
शेषनाग की शरीर छोड़ने की व्याकुलता
ब्रह्मा जी को देख कर शेषनाग ने उन्हें विनय पूर्वक प्रणाम किया और बोले, भगवन ! मेरे सभी भाई मूर्ख हैं और मूर्खतापूर्ण कार्य भी करते हैं इसलिए मैं उनके साथ नहीं रहना चाहता हूं। वो सब आपस में ही एक दूसरे के साथ शत्रु जैसा व्यवहार करते हैं। अपनी विमाता विनता और भाई गरुड़ तथा अरुण से भी शत्रुता मानते हैं। मैं उन लोगों के व्यवहार से ऊब कर ही अलग हो गया क्योंकि मुझे अपने ही भाइयों के संग उनका यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता। अब तो मैं तपस्या करते हुए इस शरीर को छोड़ दूंगा लेकिन चिंता है कि मृत्यु के बाद फिर से न इन लोगों का साथ मिले।
ब्रह्मा जी ने शेषनाग को सौंपा काम
शेषनाग की पूरी बात सुनने के बाद अब ब्रह्मा जी बोले, मुझे तुम्हारे भाइयों की करतूत पता है लेकिन जिन लोगों ने माता की आज्ञा नहीं मानी वे सब अब मुश्किल में पड़ गए हैं इसलिए मैने उनका बंदोबस्त कर रखा है। अब तुम उनकी चिंता छोड़ कर अपने लिए जो भी वर मांगना चाहते हो, मांग लो। शेषनाग ने फिर विनम्रता से हाथ जोड़ कर कहा, हे पितामह, मैं यही चाहता हूं कि मेरी बुद्धि धर्म, तपस्या और शांति में ही लगी रहे। शेषनाग की इस बात से ब्रह्मा जी और भी प्रसन्न हुए और कहा कि तुम मेरी आज्ञा से प्रजा के हित का कार्य करो। पूरी पृथ्वी, पर्वत, वन, सागर, गांव व नगरों के साथ हिलती डुलती रहती है किंतु तुम इसे इस प्रकार धारण करो कि इसका हिलना बंद हो कर यह अचल हो जाए और एक ही धुरी पर निर्धारित गति से घूमे।
शेषनाग ने पृथ्वी को सिर पर धारण किया
शेषनाग ने कहा, आप प्रजा के स्वामी और समर्थ है, मैं आपकी आज्ञा का हर हाल में पालन करुंगा, आपने जैसा कहा है उसके अनुरूप ही मैं पृथ्वी को धारण करुंगा ताकि वह हिले-डुले नहीं। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा तुम पृथ्वी के पास जाओ वे स्वयं ही तुम्हें अपने भीतर जाने का मार्ग दे देंगी और भीतर जाकर उसे धारण कर मेरा बड़ा उपकार करोगे। शेषनाग ने ब्रह्मा जी की आज्ञा के अनुसार पृथ्वी को चारो ओर से पकड़ कर अपने सिर पर उठा लिया। तब से आज तक पृथ्वी स्थिर भाव में स्थित हैं।