तुलसीदासजी ने रामचरित मानस और हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ही गुरु वंदना की है।
Guru Purnima 2025 : जिन लोगों का कोई गुरु नहीं हैं उनको चिंता करने कि आवश्यकता नहीं है, इस समस्या का समाधान तुलसी बाबा ने कर दिया है। तुलसी बाबा ने हनुमान चालीसा में लिखा है। जै जै जै हनुमान गोसाई, कृपा करहु गुरुदेव की नाई । तुलसीदासजी ने रामचरित मानस और हनुमान चालीसा के प्रारंभ में ही गुरु वंदना की है। उन्होंने कहा है कि अगर किसी व्यक्ति का कोई गुरु नहीं है तो वह हनुमान जी को अपना गुरु बना सकता है। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा दिन है जो हमें गुरु के प्रति प्रेम, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। ईश्वर का साक्षात्कार बिना गुरुकृपा के होना कठिन है। हनुमान जी के सामने पवित्र भाव रखते हुए उन्हें अपना गुरु बनाया जा सकता है। एकमात्र हनुमान जी ही है, जिनकी कृपा हम गुरु की तरह प्राप्त कर सकते हैं। तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा का शुभारंभ ही गुरु के चरणों में नमन करते हुए किया है-
श्री गुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि, बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि। बुद्धि हीन तनु जानके, सुमिरौ पवन कुमार, बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार।।
रामचरितमानस में दी गई है गुरु वंदना को प्रधानता
तुलसीबाबा ने हनुमान चालीसा में सभी को बजरंगबली को अपना गुरु बनाने को कहा है। उन्होंने शिष्य को सचेत करते हुए कहा है कि हनुमान जी को गुरु बनाने के बाद अनुशासित रहना अनिवार्य है । अपनी मति और गति सही दिशा की ओर रखनी चाहिए। राम भक्त श्री हनुमान की कृपा पानी हो तो उन्हें नियम, भक्ति और समर्पण से ही प्रसन्न किया जा सकता है। हनुमान जी उन्हीं पर कृपा करते हैं जिनके विचार नेक होते हैं। रामचरितमानस के आरंभ में सर्वप्रथम गुरु वंदना को ही प्रधानता दी गई है।
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती । सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती ।।
अर्थात् श्री गुरु चरण के स्मरण मात्र से ही आत्मज्योति का विकास हो जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु पद को सर्वोपरि माना गया है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने भी गुरु महिमा को सर्वोपरि माना है। जनकपुरी में ऋषि विश्वामित्र की सेवा इसका प्रमाण है। वर्तमान समय में भौतिकवादी जन समुदाय में गुरु के प्रति आस्था का प्रायः अभाव सा होता जा रहा है। विशेष कर युवा वर्ग इससे दूर है। जिसके परिणामस्वरूप जीवन में अशांति, असुरक्षा और मानवीय गुणों का अभाव हो रहा है। हमारे देश के ऋषि-महर्षि, तीर्थकर और संतमहापुरुष गौतम बुद्ध, महावीर जैसी दिव्य विभूतियों ने गुरु पद से अपने उपदेशों से उदार भावना स्थापित की। साधक को जीवन की सार्थकता के लिए योग्य गुरु की कृपा प्राप्त करना अतिआवश्यक होता है। गुरु प्राप्ति के लिए एकलव्य के समान अपार श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता है इसलिए सभी लोगों को गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का पूजन, वंदन और सम्मान करना चाहिए।