#Dharm: पत्नी के शर्त तोड़ने पर क्रोधित हो गए जरत्कारू ऋषि, पत्नी को छोड़ फिर तप करने चले गए अपने आश्रम
Dharm: जरत्कारू ऋषि अपने ही नाम वाली अपनी पत्नी के साथ नागराज वासुकि के भवन में रहने लगे। पत्नी के साथ निवास करने के पहले ही उन्होंने अपने शर्त की जानकारी पत्नी को भी दे दी जो वासुकि को बतायी थी। उन्होंने बताया कि जो कार्य या विषय मुझे अप्रिय हो, बिल्कुल भी न करना। यदि तुमने इसका पालन नहीं किया तो मैं तुम्हें छोड़ कर चला जाऊंगा। पत्नी ने उनकी आज्ञा को स्वीकार किया और सेवा करने लगी। समय पर उसका गर्भधारण हुआ जो धीरे-धीरे बढ़ने लगा।
सूर्यास्त का समय जान पत्नी असमंजस में पड़ी
एक दिन किसी बात पर खिन्न होकर जरत्कारू ऋषि अपनी पत्नी की गोद में सिर रखकर सोए हुए थे। वे अभी सो ही रहे थे कि सूर्यास्त का समय हो गया। उनकी पत्नी जगाने या न जगाने के असमंजस में पड़ गयीं। उन्होंने विचार किया कि ऋषिवर कष्ट उठाकर धर्म का पालन करते हैं। जगाने पर कोप का भय और न जगाने पर धर्म लोप का डर। ऋषि पत्नी ने जगाना ही ठीक समझा और कहा, पतिदेव, सूर्यास्त का समय हो रहा है, आप आचमन कर संध्या कीजिए, यह हवन का समय है।
पत्नी की बात सुन कर वे जागे और क्रोध में उनके होंठ कांपने लगे और बोले सर्पिणी तूने मेरा अपमान किया है इसलिए अब मैं तेरे पास नहीं रहूंगा और जहां से आया हूं
पत्नी के जगाने से क्रोधित हुए ऋषि
पत्नी की बात सुन कर वे जागे और क्रोध में उनके होंठ कांपने लगे और बोले, सर्पिणी ! तूने मेरा अपमान किया है इसलिए अब मैं तेरे पास नहीं रहूंगा और जहां से आया हूं वहीं चला जाऊंगा। यह तय है कि मेरे जागने तक सूर्य अस्त ही नहीं हो सकते थे किंतु अब अपमान वाले स्थान पर मैं नहीं रहूंगा। पति से इतने कठोर वचन और निर्णय सुनते ही ऋषि पत्नी जरत्कारू भीतर तक हिल उठी। उसने विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़ कर पति से प्रार्थना की, भगवन, मैने आपका अपमान करने के लिए आपको नहीं जगाया है बल्कि मुझे तो आपके धर्म का लोप होने की चिंता थी। इस पर ऋषि जरत्कारू बोले, मेरे मुख से एक बार जो शब्द निकल गए वो झूठ नहीं हो सकते। फिर मेरे और तुम्हारे बीच पहले ही शर्त तय हो चुकी थी। मैं अब यहां से जा रहा हूं और अपने भाई वासुकि से कहना कि वे चले गए । यह भी कहना कि मैं यहां पर सुख से रहा और तुम आगे की कोई चिंता न करना।
तेजस्वी पुत्र जन्म का आशीर्वाद देकर चले गए जरत्कारू
ऋषि पत्नी शोक ग्रस्त हो गयी। आंखों में आंसू भर कर कांपते हृदय से बोली, हे धर्मज्ञ, मुझ निरपराध को न छोड़िए मैं धर्म पर अटल रह कर आपके प्रिय हित में संलग्न रहती हूं। मेरे भाई ने एक प्रयोजन लेकर आपके साथ मेरा विवाह किया था। अभी वह पूरा नहीं हुआ है। हमारे जाति भाई माता कद्रू के शाप से ग्रस्त है जिन्हें मुक्त करने के लिए आपसे एक संतान उत्पन्न होना आवश्यक है। पत्नी की बात सुनकर ऋषि जरत्कारू बोले, तुम्हारे पेट में अग्नि के समान तेजस्वी गर्भ है। वह बहुत बड़ा विद्वान और धर्मात्मा ऋषि होगा। इतना कह कर ऋषि ने उस स्थान से प्रस्थान किया।