Dharam : अष्टक मुनि, वसुमान, प्रतर्दन और औशीनर शिवि के संग राजा ययाति स्वर्ग की ओर चले तो राजा ने बताया एक गुप्त रहस्य, आप भी जानिए

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स्वर्ग से पृथ्वी पर गिर रहे रहे राजा ययाति को बीच में ही रोक कर अष्टक मुनि ने जब यह जान लिया कि वे सार्वभौम राजा होने के बाद भी धर्मात्मा, सत्यनिष्ठ, कर्तव्यपरायण व विद्वान हैं।

Dharam : स्वर्ग से पृथ्वी पर गिर रहे रहे राजा ययाति को बीच में ही रोक कर अष्टक मुनि ने जब यह जान लिया कि वे सार्वभौम राजा होने के बाद भी धर्मात्मा, सत्यनिष्ठ, कर्तव्यपरायण व विद्वान हैं और तपस्या में अपना अभिमान व्यक्त करने के कारण उन्हें स्वर्ग से पृथ्वी पर भेजा गया है। महान तपस्वी अष्टक मुनि के कहने पर उन्हें पृथ्वी पर गिरने के पहले ही रुकना पड़ा और उनके प्रश्नों का उत्तर देना पड़ा।  इसके बाद अष्टक मुनि सहित ऋषि वसुमान, प्रतर्दन और औशीनर शिवि ने भी अपने सारे पुण्य उन्हें दान में देने का प्रस्ताव रखा किंतु एक क्षत्रिय राजा होने के नाते उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि जो स्वयं ही दान देता रहा हो वह किसी ब्राह्मण से कैसे दान ले सकता है। 

पांचों महानुभावों के रथों से आकाश हुआ प्रकाशमान 

इसके बाद अचानक ही राजा ययाति ने देखा आसमान से पांच स्वर्णिम रथ आ रहे हैं तो उन्होंने चारो ऋषियों से कहा कि देखिए आप लोगों को लेने के स्वर्ग से रथ आ रहे हैं। वाकई रथ उनके लिए ही थे, इसलिए चारो ऋषियों के साथ राजा भी रथों पर सवार हो कर पुण्य लोकों की यात्रा के लिए आकाश मार्ग पर चल पड़े। रथों पर आरूढ़ होकर उनके चलते ही आकाश प्रकाशित होने लगा।  

शिवि ऋषि के आगे जाने का कारण

पांचों रथों में औशीनर शिवि ऋषि का रथ सबसे आगे चल रहा था। उनका रथ आगे बढ़ता देख अष्टक मुनि ने राजा ययाति से पूछा, राजन ! इंद्र मेरा मित्र है इसलिए मैं समझता था कि सबसे पहले मैं ही उसके पास पहुंचूंगा लेकिन देख रहा हीं कि शिवि का रथ आगे बढ़ता ही जा रहा है। इसका क्या कारण है। उत्तर देते हुए ययाति बोले, हे ऋषिवर ! आप सभी श्रेष्ठ तपस्वी हैं लेकिन ऋषि शिवि ने अपना सब कुछ उचित पात्रों को दान कर दिया। दान, तपस्या, सत्य, धर्म, ह्रीं, श्री, क्षमा, सौम्यता और सेवा की अभिलाषा आदि गुण शिवि में विद्यमान हैं। इतने पर भी उन्हें अभिमान तो दूर उसकी छाया तक छू तक नहीं सकी है। इसी से वे सबसे आगे बढ़ते जा रहे हैं।  

ययाति ने अष्टक मुनि को बताया गुप्त रहस्य

उनके इस जवाब के बाद न जाने क्यों अष्टक मुनि को कुछ शक हुआ जिसका निवारण करने के लिए उन्होंने ययाति से सीधे पूछा, राजन ! आप सच-सच बताएं कि आप कौन हैं और किसके पुत्र हैं। आप जैसा ज्ञान और त्याग तो किसी ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय में मैंने आज तक नहीं सुना। मैं सम्राट नहुष का पुत्र सार्वभौम चक्रवर्ती ययाति हूं और मेरा पुत्र पुरु है। अब आपने पूछा ही है तो मैं एक गुप्त बात बताए देता हूं क्योंकि आप मेरे अपने हैं। मैं तुम लोगों का नाना हूं। इस तरह से वार्तालाप करते हुए सभी लोग स्वर्ग चले गए। 

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