Dharam: कश्यप ऋषि ने अपने पुत्र गरुड़ को सुनाई, दो सगे भाइयों के एक दूसरे के दुश्मन बनने की कहानी   

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कश्यप ऋषि ने अपने पुत्र गरुड़ को बताया कि उसके बाद से दोनों उस सरोवर में रहते हैं।

Dharam : पिता कश्यप ऋषि से भूख शांत करने और अमृत प्राप्ति का तरीका जानने के बाद गरुड़ उस विश्वविख्यात सरोवर की ओर बढ़े जहां पर शत्रुता भाव वाले विशालकाय हाथी और कछुआ रहते थे। 

भाइयों का अलगाव कभी अच्छा नहीं होता

दरअसल, हाथी और कछुआ पूर्व जन्म में सगे भाई हुआ करते थे। बड़ा भाई विभावसु था तो ऋषि लेकिन बहुत क्रोधी, उसके छोटे भाई का नाम था सुप्रतीक जो बहुत ही तपस्वी था। क्रोधी स्वभाव के कारण छोटा अपने धन और संपत्ति को बड़े के साथ नहीं रखना चाहता था। वह रोज ही अपने भाई से बंटवारे का आग्रह करता था। क्रोधी होने के बाद भी वह अपने भाई को अपने से अलग नहीं करना चाहता था इसलिए समझाया, हे सुप्रतीक ! धन के मोह के कारण ही लोग बंटवारा चाहते हैं और बंटवारा होने के बाद एक दूसरे के विरोधी हो जाते हैं। तब उस परिवार से शत्रुता रखने वाले भी अलग-अलग उनके मित्र बन कर भाइयों में फूट पैदा करा देते हैं। उनके मन की पूरी होते ही दुश्मन बने दोस्त खामियां बता कर वैर भाव को बढ़ा देते हैं। अलग-अलग होते ही उनका पतन शुरु हो जाता है इसी लिए सज्जन पुरुषों भाइयों के अलगाव को अच्छा नहीं मानते हैं। अलग होने के बाद दोनों के बीच की मर्यादा समाप्त हो जाती है। अलग होने के बाद दोनों के बीच की मर्यादा समाप्त हो जाती है। 

दोनों भाइयों ने एक दूसरे को दिया पशु होने का शाप

ऋषि विभावसु ने अपने छोटे भाई को समझाते हुए आगे कहा, जो लोग गुरु और शास्त्रों की बातों को न मान कर एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखते हैं, उनको वश में रखना कठिन है। तेरे मन में भी संदेह पैदा हो गया और धन के कारण ही तू अलग होना चाहता है। मैं धन तो दिए देता हूं लेकिन उसके साथ ही एक शाप भी कि अगले जन्म में तू हाथी बनेगा। अब सुप्रतीक कैसे शांत रहता, सो उसने भी बड़े भाई को शाप दे दिया कि तू अगले जन्म में कछुआ बने। 

उद्देश्य पूरा होते देख प्रसन्न हुआ गरुड़

कश्यप ऋषि ने अपने पुत्र गरुड़ को बताया कि उसके बाद से दोनों उस सरोवर में रहते हैं। हाथी छह योजन अर्थात वर्तमान मापक के अनुसार 78 किलोमीटर ऊंचा और 156 किलोमीटर लंबा है। इसी तरह कछुआ 39 किलोमीटर ऊंचा और 130 किलोमीटर गोल है। ये दोनों ही एक दूसरे के प्राण लेने को उतावले हो रहे हैं, तुम उस सरोवर में जाओ और उनको खाने के बाद अमृत ले आओ। पिता से मिली इस जानकारी से गरुड़ का मन प्रसन्न हो गया कि अब उसका उद्देश्य पूरा हो जाएगा।  

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