पुत्र की समस्या और मां को दासत्व भाव से छुड़ाने का प्रयास सुन कर कश्यप ऋषि को प्रसन्नता की अनुभूति हुई।
Dharam : स्वयं और अपनी मां विनता को सर्पों और उनकी मां कद्रु की दासता से मुक्त कराने को अमृत की तलाश में गरुड़ जी घर से समुद्र के रास्ते उड़े। मां ने उन्हें निर्देश दिया था कि भूख लगने पर समुद्र के एक द्वीप में निषादों की बस्ती है, तुम उन्हें खाकर अपनी भूख शांत कर सकते हो किंतु ध्यान रहे किसी ब्राह्मण को कभी भोज्य न समझना। उनका वध भूल कर भी नहीं करना चाहिए। गरुड़ जी ने उस बस्ती में निषादों को तो खाया ही, साथ में गलती से एक ब्राह्मण भी उनके मुख में आ गया, जिससे उनका तालू जलने लगा तो छोड़ दिया।
पिता से पूछा अमृत लाने का रास्ता
आगे चल कर उन्हें अपने पिता कश्यप ऋषि एक जंगल में तपस्या करते मिले। कश्यप जी के आश्रम में पहुंच कर अपने पिता को सादर प्रणाम किया तो उन्होंने पूछा, पुत्र तुम अपनी माता के साथ कैसे हो, तुम लोगों को पर्याप्त मात्रा में भोजन तो मिल जाता है। इस पर गरुड़ ने पूरी बात बतायी, मैं अपनी माता के सकुशल और सानंद से हूं। पर्याप्त मात्रा में भोजन न मिलने का दुख अवश्य ही है। मैं अपनी माता का दासत्व छुड़ाने के लिए सर्पों के कहने पर अमृत लेने के लिए जा रहा हूं। माता ने मुझे निषादों का भोजन करने के लिए कहा था तो वह तो मैने कर लिया फिर भी पेट नहीं भरा। अब आप ही कोई ऐसी वस्तु बताइए जिसे खाकर मैं अमृत लाने के मार्ग पर आसानी से बढ़ सकूं।
गरुड़ ने जाना भूख मिटाने का तरीका
पुत्र की समस्या और मां को दासत्व भाव से छुड़ाने का प्रयास सुन कर कश्यप ऋषि को प्रसन्नता की अनुभूति हुई कि पुत्र अपनी मां का कितना आज्ञाकारी है और उन्हें हर तरह से सुखी एवं प्रसन्न देखना चाहता है। इतना जान कर ऋषि ने कहा, बेटा यहां से कुछ दूरी पर ही एक विशाल और संसार में प्रसिद्ध सरोवर है। इस सरोवर में एक हाथी और एक कछुआ रहता है किंतु दोनों ही एक दूसरे के घोर शत्रु हैं, तुम उनका भक्षण करोगे तो तुम्हारी भूख शांत हो सकेगी।