Dharam : जानिए भीमसेन कैसे लौटे नागलोक से, फिर विदुर ने युधिष्ठिर से क्यों कहा कि यह बात किसी को भी न बताना 

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जानिए भीमसेन कैसे लौटे नागलोक से, फिर विदुर ने युधिष्ठिर से क्यों कहा कि यह बात किसी को भी न बताना.

Dharam : जल विहार में कौरव और पांडवों ने खूब खेला कूदा और विश्राम करने के बाद बिना भीमसेन के ही यह चर्चा करते हुए हस्तिनापुर पहुंच गए कि भीमसेन पहले ही पहुंच गए होंगे। इधर दुर्योधन को लग रहा था कि उसकी चाल कामयाब रही तो वह मन ही मन प्रसन्न था। महल में पहुंच कर पांडवों ने माता कुन्ती से पूछा, माता जी ! भीमसेन कहां हैं, जल विहार में तो हमने उन्हें बहुत ढूंढा पर नहीं मिले तो सोचा घर चले गए होंगे। यह सुनते ही कुन्ती घबरा गयीं क्योंकि भीम तो उनके पास आए ही नहीं थे। उन्होंने चिंतित होते हुए कहा कि भीमसेन तो यहां आए नहीं, जाओ सब लोग उसे ढूंढ कर लाओ। 

विदुर ने माता कुन्ती को सांत्वना दी

माता कुन्ती ने आशंका जतायी कि दुर्योधन की आंख में वो हमेशा ही खटकता रहता है, कहीं उसने क्रोध वश मेरे पुत्र को मार तो नहीं दिया। मुझे बड़ी चिंता हो रही है। विदुर ने उन्हें समझाते हुए कहा, हे कल्याणि, ऐसी बात मुख से न निकालो और शेष पुत्रों की रक्षा करो। दुरात्मा दुर्योधन से पूछने पर वह तो और भी चिढ़ जाएगा। महर्षि व्यास के अनुसार तुम्हारे सभी पुत्र दीर्घायु हैं इसलिए भीमसेन चाहे कहीं भी हो लौटेगा अवश्य ही। विदुर जी तो समझा बुझा कर चले गए किंतु माता कुन्ती की चिंता कम नहीं हुई। 

युधिष्ठिर ने भीमसेन को शांत रहने को कहा

उधर नागलोक में आठवें दिन रस पच जाने पर जागे तो नागों ने उनके पास पहुंच कर उन्हें तसल्ली दी और कहा, आपने जो रस पिया है वह बहुत ही बल वर्धक है। अब आप दस हजार हाथियों के समान बलवान हो जाएंगे। युद्ध में आपसे कोई नहीं जीत सकेगा। अब आप दिव्य जल से स्नान कर पवित्र सफेद कपड़े धारण कीजिए और अपने घर जाइए। आपकी याद में परिवार के सभी लोग परेशान होंगे। उन्होंने स्नान कर दिव्य वस्त्र और आभूषण धारण कर नागों से अनुमति ली तो नागों ने उन्हें उसी बगीचे तक पहुंचा दिया और स्वयं अंतर्ध्यान हो गए। भीमसेन घर पहुंचे तो सभी उन्हें देख प्रसन्न हुए फिर उन्होंने दुर्योधन की सारी करतूत बताते हुए नागलोक की यात्रा का वृतांत भी सुनाया। युधिष्ठिर ने कहा, भाई ! बस अब चुप हो जाओ और यह बात किसी से भी न कहना और हम सब भाई मिल कर एक दूसरे की रक्षा करें। 

कौरव और पांडवों ने गुरु कृपाचार्य से ली शिक्षा

दुर्योधन ने ईर्ष्या में भीमसेन के सारथि की गला घोट कर हत्या कर दी। दुर्योधन ने एक बार और भीमसेन के भोजन में विष डाला तो युयुत्सु ने इसकी जानकारी पांडवों को दे दी किंतु भीमसेन ने वह विष मिला भोजन खाकर भी पचा लिया और विदुर की सलाह पर सब चुप ही रहे। जहर से न मरने पर दुर्योधन आदि ने और भी कई तरह से मारने की कोशिश की। इधर राजकुमारों के बड़े होने पर महाराजा धृतराष्ट्र ने गुरु कृपाचार्य को बुलवाकर उन्हें शिक्षा देने के लिए सौंप दिया। कौरव और पांडवों ने उनसे धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की।

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