Dharam : गरुड़ को भोजन करने के लिए करना पड़ा कठोर परिश्रम, जानिए किस तरह उन्होंने हाथी और कछुए को खाकर अपनी भूख शांत की, कौन-कौन सी कठिनाई आई
Dharam : कश्यप ऋषि से आज्ञा प्राप्त कर उनके पुत्र गरुड़ जी उसी सरोवर में गए जहां पर विशालकाय हाथी और कछुआ रहता था जो वास्तव में पूर्व जन्म में सगे भाई थे। दोनों ही तपस्वी और ऋषि थे किंतु आपसी ईर्ष्या के चलते एक दूसरे को शाप दे कर इस योनी में पहुंचे थे।
हाथी और कछुए को पंजों में दबोचा
गरुड़ जी ने एक पंजे के नाखूनों से हाथी और दूसरे पंजे के नाखूनों से कछुए को पकड़ लिया और दोनों को अपने पंजों में लटका कर आकाश मार्ग में ऊंचाई पर उड़ते हुए अलम्ब तीर्थ में पहुंचे। इस तीर्थ में एक पर्वत था सुवर्ण गिरि। इस पर्वत पर बहुत से देव वृक्ष लहलहा रहे थे। भारी भरकम गरुड़ और उनके पंजों में लटकते विशालकाय हाथी और कछुए को देख कर वे पेड़ भी भयभीत हो गए। उन्हें लगा कि कही इनके धक्के से वे तने से ही न टूट जाएं लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उनकी शंका भांप कर गरुड़ जी दूसरी ओर उड़ गए।
वटवृक्ष पर गरुड़ के बैठते ही टूटी डाल
वटवृक्ष पर गरुड़ के बैठते ही टूटी डाल
एक स्थान पर विशाल वट वृक्ष था जो उड़ते हुए गरुड़ जी की समस्या को निमिष भर में समझ गया और स्वयं ही कहा कि तुम मेरी सौ योजन लंबी डाल पर बैठ कर इनका भोजन कर सकते हो। गरुड़ जी ने उनकी बात मानी और जैसे ही डाल पर बैठे, वह चड़-चड़ की आवाज कर टूट कर गिरने लगी। गरुड़ जी ने उस शाखा को मजबूती से पकड़ लिया तो देखा नीचे की ओर सिर करके वालखिल्य ऋषि लटक रहे हैं। गरुड़ को तुरंत ही ध्यान आया कि डाल के टूटने पर तपस्या में लीन महाज्ञानी ऋषि गण गिर कर मर सकते हैं। इस विचार के आते ही उन्होंने अपनी चोंच से पेड़ की उस शाखा को पकड़ लिया और आकाश में उड़ते रहे किंतु कहीं भी उन्हें बैठने का स्थान नहीं मिला।
बालखिल्य ऋषियों को बचाया
उड़ते-उड़ते वे गंधमादन पर्वत पर पहुंचे, इस अवस्था में देख कर उन्हेंं पिता कश्यप ऋषि की सीख दी, बेटा कहीं अचानक साहस का कार्य न कर बैठना। अंगूठे के आकार के सूर्य की किरण पीकर तपस्या करने वाले बालखिल्य ऋषि कहीं क्रोधित होकर तुम्हें भस्म न कर दें। पुत्र से इस बात को कहने के बाद कश्यप ऋषि ने बालखल्य ऋषियों से प्रार्थना की, हे ऋषि गण, गरुड़ प्रजा के हित के लिए एक महान कार्य करना चाहता है। उसे इस कार्य को करने की आज्ञा प्रदान करें। इतना सुन बालखिल्य ऋषियों ने वटवृक्ष की शाखा छोड़ दी और तपस्या करने हिमालय पर्वत चले गए। गरुड़ ने भी वट वृक्ष की उस शाखा को छोड़ा और पर्वत की चोटी पर बैठकर हाथी और कछुए को खा कर अपनी भूख शांत की।