Dharam : अमृत पाने के लिए इंद्र और उनकी सेना से जूझ गए गरुड़, जानिए सबको लहूलुहान कर कैसे बढ़े लक्ष्य की ओर
Dharam : गंधमादन पर्वत की चोटी पर बैठकर गरुड़ ने अपने पंजों में दबे विशालकाय हाथी और कछुए को खाकर अपनी भूख शांत की। भूख शांत होते ही वे पूरी ऊर्जा से वहां से उड़ चले। इधर वो उड़े और उधर स्वर्गलोक में भयंकर उत्पात मचने लगा। इस नजारे को देख देवराज इंद्र बृहस्पति देव के पास पहुंचे। उन्होंने इसका कारण पूछते हुए कहा, भगवन, अचानक इतना उत्पात क्यों होने लगा, क्या कोई ऐसा शत्रु तो नहीं है युद्ध में मुझे जीतने की कामना रखता हो।
GARUN DHARAM VEDEYE WORLD SHASHISHEKHAR TRIPATHI
बृहस्पतिदेव ने इंद्र को दिया करारा जवाब
बृहस्पतिदेव ने एक क्षण ध्यान करने के बाद कहा, हे इंद्र, तुम्हारे अपराधों, आलस्य और लापरवाही बरतने तथा बालखिल्य ऋषियों से तपोबल प्राप्त करने के बाद कश्यप ऋषि के पुत्र और विनता नंदन पक्षिराज गरुड़ अमृत लेने यहां आ रहे हैं, यह उसी बात का उत्पात है। गरुड़ की विशेषता बताते हुए उन्होंने इंद्र से कहा, वह आकाश में स्वच्छन्द विचरण करते हुए इच्छा के अनुसार अपना रूप धारण कर लेता है। वह अपार शक्ति वाला है इसलिए कोई भी असाध्य कार्य कर सकता है। लगता है वह अमृत लेने की अभिलाषा से इधर आ रहा है। महाभारत के आदिपर्व के अनुसार बृहस्पति देव से यह बात सुनकर इंद्र को थोड़ा भय हुआ फिर अपने रक्षकों को बुला कर कहा, देखो महापराक्रमी पक्षिराज गरुड़ यहां से अमृत ले जाने आ रहा है। इसलिए सभी लोग अपने-अपने स्थान पर सचेत हो जाएं। वह किसी भी कीमत पर यहां से अमृत न ले जा सके। इतना आदेश देने के बाद स्वयं इंद्रदेव भी अपने सभी शस्त्रों के साथ वहां मुस्तैद हो गए।
पंजों और चोंच के प्रहार से लहूलुहान हुए देवता
गरुड़ भी कम होशियार नहीं थे, उन्होंने अपने पंखों को इस तरह से फड़फड़ाया कि धूल का एक बहुत बड़ा गुबार उठा और आसमान में छा गया। किसी को कुछ नहीं सूझा और देवता तक दृष्टिहीन जैसे हो गए। सारे स्वर्ग में कुछ देर के लिए अशांति जैसी हो गयी। पक्षिराज ने इस स्थिति का लाभ लेते हुए अपने पंजों और डैनों से इतनी चोट की कि सभी देवता चुटहिल हो कराहने लगे । माजरा समझ में आया तो इंद्र ने वायुदेवता को आदेशित किया, तुम इतनी तेजी से वायु चलाओ कि धूर का पर्दा ही हट जाए, इस कार्य को शीघ्रता से कहो। वायु ने इंद्र की आज्ञा का पालन किया तो सब ओर उजाला फैल गया। देवता अपने शस्त्रों से गरुड़ पर हमला करने लगे लेकिन गरुड़ ने उसे विफल ही नहीं किया बल्कि अपने पंखों, चोंच और पंजों से इस कदर मारा कि सब लहुलुहान हो कर इधर-उधर भाग खड़े हुए।
आग की ज्वाला को भी कर दिया शांत
अमृत कलश की तलाश में गरुड़ आगे बढ़े तो देखा उसके चारो ओर आग की लाल-लाल लपटें उड़ रही हैं। इससे लड़ने का उपाय भी गरुड़ ने निकाल लिया और अपने आठ हजार एक सौ मुंह बना कर उनमें बहुत सी नदियों का पानी खींच कर भरा और अमृत कलश के आसपास जलती आग पर उड़ेल दिया। जिससे आग शांत हो गयी। अब वे अमृत पाने के अगले और अंतिम पड़ाव की ओर चल पड़े।