Aastik Birth: जरत्कारू ऋषि के घर छोड़ जाने से पत्नी को हुआ दुख, जानिए फिर किस दिव्य बच्चे का हुआ जन्म और उसके नाम की कहानी 

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नागराज वासुकि की बहन जरत्कारू के पति ऋषि जरत्कारू उनके ही आवास में विवाह के बाद रहने लगे।

Aastik Birth : नागराज वासुकि की बहन जरत्कारू के पति ऋषि जरत्कारू उनके ही आवास में विवाह के बाद रहने लगे। कुछ समय ही सुख से बीत पाए थे एक दिन संध्या समय होने पर ऋषि की पत्नी ने पति को जगा दिया। बस इसी बीत पर क्रुद्ध हो कर वे घर छोड़ कर चले गए। पति के वहां से जाते ही ऋषि पत्नी अपने भाई नागराज वासुकि के पास गयी और पति के जाने के समाचार सुनाया। इस समाचार को सुन कर नागराज का काफी कष्ट हुआ। उन्होंने तुरंत ही बहन से पूछा, तुम्हें तो मालूम ही है कि तुम्हारा विवाह किसी विशेष उद्देश्य से हुआ था। यदि तुम्हारे गर्भ से पुत्र का जन्म हो जाता तो नाग जाति का भला होता। वह पुत्र निश्चय ही जनमजेय के यज्ञ से हम लोगों की रक्षा करता। बहन बड़ा भाई होने के नाते मुझे पूछने में संकोच तो लग रहा किंतु क्या तुम बता सकती हो कि उद्देश्य में सफलता मिली या नहीं। जरत्कारू बहुत पहुंचे हुए ऋषि हैं और विवाह के पहले ही उन्होंने शर्त रख दी थी इसलिए मैं अब उनसे कुछ भी नहीं पूछ सकता हूं। 

तेजस्वी पुत्र के जन्म का मिला आशीर्वाद

बड़े भाई की बात सुन कर ऋषि पत्नी ने नागराज वासुकि को ढांढ़स बंधाते हुए कहा, भाई, मैने भी उनसे यह बात कही थी जिस पर उन्होंने कहा है कि गर्भ है। यह बात भी सत्य है कि उन्होंने हंसी विनोद में भी कभी कोई झूठ बात नहीं कही। तो फिर इस संकट के समय में उनकी कही बात तो झूठ हो ही नहीं सकती है। उन्होंने जाते हुए मुझसे कहा था, हे नाग कन्या, अपने प्रयोजन सिद्धि के बारे में तुम किसी तरह की चिंता मत करना। तुम्हारे गर्भ से सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी पुत्र होगा। इसलिए हे मेरे भाई, तुम अपने मन में किसी प्रकार का दुख न करो। इतना सुन कर नागराज वासुकि ने प्रसन्नता का अनुभव किया और बहन का स्वागत सत्कार करने लगा। उसके पेट का गर्भ धीरे-धीरे बढ़ने लगा जिस तरह शुक्ल पक्ष का चंद्रमा पूर्ण आकार लेता है। 

नामकरण की रोचक जानकारी

समय आने पर नागराज वासुकि की बहन जरत्कारू के गर्भ से एक दिव्य कुमार का जन्म हुआ। उसका जन्म होते ही मातृ और पितृ पक्ष का दुख व भय जाता रहा। बड़ा होने पर उसने च्यवन मुनि से वेदों का शुरु से अंत तक पूरी गंभीरता के साथ अध्ययन किया। वह ब्रह्मचारी बालक बचपन में ही बड़ा बुद्धिमान और सात्विक था। नागराज वासुकि के घर पर बाल्यावस्था में बड़ी ही सावधानी से उसकी रक्षा की गयी। थोड़े ही दिनों में वह बालक इंद्र के समान बढ़कर नागों को हर्षित करने लगा। जब वह गर्भ में था तभी पिता ने उसके बारे “अस्ति” अर्थात है शब्द का उच्चारण किया था। इसी कारण उसका नाम “आस्तिक” हुआ ।

  

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