आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वेद व्यास जी का जन्म हुआ था इसलिए हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
Guru Poornima 2025 : गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय अर्थात गुरु ने ही गोविंद (भगवान) तक पहुंचने का मार्ग दिखाया है इसलिए गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा है। गुरु बिना ज्ञान की प्राप्ति होना असंभव है। गुरु एक ऐसा शब्द जो ज्ञान, प्रेरणा के मार्गदर्शन का प्रतिबिंब हैं। जो अज्ञानता रुपी अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं और हमें सही पथ पर चलने की राह दिखाते हैं। गुरु और शिष्य के अटूट प्रेम के रूप में मनाए जाने वाला एक ऐसा त्योहार जो प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसे गुरु पूर्णिमा कहते है। यह दिन गुरु को सम्मानित करने और उनके प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर देता है। हम सभी को इस खास दिन पर अपने गुरु का सम्मान व वंदना जरुर करनी चाहिए। जानते है गुरु पूर्णिमा की तिथि, महत्व और इस खास दिन पर किए जाने वाले विशेष उपायों के बारे में-
गुरु पूर्णिमा की तिथि और समय
निर्णयसागर पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 09 जुलाई को रात 01 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी और यह 10 जुलाई को रात 2 बजकर 07 मिनट तक रहेगी, इसलिए गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई गुरुवार के दिन मनाई जाएगी।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वेद व्यास जी का जन्म हुआ था इसलिए हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा का पर्व वेद व्यास जी को समर्पित है। यह पर्व गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक है । इस दिन, शिष्य अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते है उनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए उनका सम्मान करते है। माना जाता है कि इस दिन अपने गुरु और गुरु तुल्य वरिष्ठजनों को मान-सम्मान देते हुए उनका आभार जरूर व्यक्त करना चाहिए साथ ही जीवन में मार्गदर्शन करने के लिए उन्हें गुरु दक्षिणा या उपहार भी जरूर देना चाहिए।
क्या करें, इस खास दिन पर
गुरु पूर्णिमा के दिन व्रत, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का बहुत महत्व है। माना जाता है कि जो व्यक्ति गुरु पूर्णिमा का व्रत रखता है और इस खास दिन पर दान-पुण्य करता है, तो उसे जीवन में ज्ञान की प्राप्ति और जीवन के बाद मोक्ष मिलता है।
गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु की पूजा अर्चना के साथ-साथ सेवा भी करनी चाहिए और गुरु को उपहार भेंट करना चाहिए।
शिष्य अपने गुरु की प्रत्यक्ष रूप से पूजा करें, यदि वह आपके सामने नहीं है तो उनकी चरण पादुका की भी पूजा कर सकते हैं।
इस दिन गुरु का आशीर्वाद लेने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है। गुरु की याद में पवित्र ग्रंथ गीता का भी पाठ भी कर सकते हैं ।