Vichitravirya Marriage : काशी में गंगा पुत्र भीष्म अपने बाहुबल से सभी राजाओं को हराकर काशी नरेश की तीनों कन्याओं का हरण कर हस्तिनापुर ले आए और तीनों कन्याओं को अपने छोटे भाई तथा हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य को समर्पित कर उनके विवाह का भव्य आयोजन कराया।
वापस लौटी काशी नरेश की बड़ी बेटी
काशी नरेश की बड़ी कन्या अम्बा ने कहा, हे भीष्म ! मैं तो पहले ही मन ही मन शाल्व नरेश को अपना पति मान चुकी हूं और इस कार्य में मेरे पिता की भी सहमति थी। मैं स्वयंवर में भी उन्हें ही चुनती किसी अन्य को नहीं। आप तो बहुत प्रतापी और धर्मज्ञ हैं इसलिए आपसे निवेदन कर रही हूं कि आप धर्मानुसार आचरण करें। भीष्म ने राज्य के ब्राह्मणों को बुला कर सारी स्थिति बताते हुए विचार विमर्श किया तो ब्राह्मणों ने अम्बा को इच्छानुसार जाने की अनुमति दे दी। इस पर अम्बा को रथ में बैठा कर उसकी इच्छा के अनुसार वापस भेज दिया गया, जिससे वह प्रसन्न हुई।
विचित्रवीर्य का हुआ विवाह
काशी नरेश की दो अन्य पुत्रियों के नाम अम्बिका और अम्बालिका था। दोनों का विवाह विचित्रवीर्य के साथ कर दिया गया। विवाह होते ही विचित्रवीर्य युवा अवस्था के उन्माद में काम वासना के वसीभूत हो गया। उसकी दोनों पत्नियां भी प्रेम से खूब सेवा करती रहतीं। सात वर्षों तक केवल विषय भोग करने के कारण विचित्रवीर्य को टीबी अर्थात क्षय रोग हो गया। संसार भर के श्रेष्ठ चिकित्सकों को बुलाकर उसका इलाज कराया गया किंतु वह ठीक नहीं हो सका और कमजोरी बढ़ती ही गयी जिसके कारण कुछ दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। इस घटना से महात्मा भीष्म के मन को गहरी ठेस लगी, किंतु धीरज रखते हुए उन्होंने ब्राह्मणों की सलाह से विचित्रवीर्य का अंतिम संस्कार किया।
भीष्म को बुला माता सत्यवती ने रखा प्रस्ताव
विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद माता सत्यवती ने भीष्म को बुलाकर कहा, बेटा भीष्म ! अब धर्मपरायण पिता के पिंडदान और वंश रक्षा का भार तुम पर है। मैं तुम पर विश्वास करते हुए एक कार्य सौंप रही हूं जिसे तुम्हें पूरा करना है। उन्होंने भीष्म से कहा कि देखो तुम्हारा भाई विचित्रवीर्य बिना कोई संतान छोड़े संसार से चला गया। अब तुम्हारा दायित्व बनता है कि तुम काशी नरेश की पुत्र कामिनी कन्याओं से संतान उत्पन्न कर वंश की रक्षा करने के साथ ही राजसिंहासन संभालो। माता सत्यवती की बात का सगे संबंधियों और मंत्रिमंडल ने भी समर्थन किया। भीष्म ने विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया, माता ! आप तो जानती ही हैं कि आपके विवाह के समय मैंने कैसी प्रतिज्ञा की थी, अब आपके प्रस्ताव के बाद मैं पुनः प्रतिज्ञा करता हूं, मैं त्रिलोकी का राज्य, ब्रह्म का पद और इन दोनो से अधिक मोक्ष का भी परित्याग कर दूंगा किंतु सत्य नहीं छोड़ूंगा। धर्मराज भले ही अपना धर्म छोड़ दें किंतु मैं अपनी सत्य प्रतिज्ञा नहीं छोड़ सकता।