ज्योतिषी विधाता के स्वरूप कैसे हो सकते हैं, इस पर रमेश चिंतक ने एक प्रसंग सुनाया। बात त्रेता युग की है। अवसर था-प्रभु राम और माता जानकी के विवाह का
VEDEYE TALK : इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंसेज (आईकास) कानपुर चैप्टर के तत्वावधान में “2025 का भारत-ज्योतिष के दर्पण में” संगोष्ठी का आयोजन रविवार को किदवई नगर के कौशल्या देवी बालिका इंटर कॉलेज में हुआ। कार्यक्रम के दौरान आईकास के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रमेश चिंतक ने वेदआई से बातचीत की। ज्योतिषियों की काबिलियत और विश्वसनीयता के सवाल पर रमेश चिंतक ने कहा कि अनेक सद्ग्रंथों में ज्योतिषियों को विधाता का स्वरूप कहा गया है, क्योंकि ये किसी को भी न समझ में आने वाली ग्रहों की टेढ़ी-मेढ़ी चाल और पितामह ब्रह्मा की लेखनी आसानी से पढ़ लेते हैं और इसे पढ़कर देश दुनिया को भविष्य में होने वाली अनहोनियों से आगाह भी करते हैं। इसीलिए आदिकाल से ही ज्योतिषियों को समाज में सर्वोच्च स्थान मिलता रहा है। आज भी कालखंड की गणना और सटीक भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषी हैं। हां, यह जरूर कह सकते हैं कि देश दुनिया में ऐसे ज्योतिषी कम ही हैं।
रमेश चिंतक राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंसेज
ज्योतिषी विधाता के स्वरूप कैसे हो सकते हैं, इस पर रमेश चिंतक ने एक प्रसंग सुनाया। बात त्रेता युग की है। अवसर था-प्रभु राम और माता जानकी के विवाह का। पितामह ब्रह्मा जानते थे कि राम कोई और नहीं साक्षात परब्रह्म हैं। इसीलिए उनकी हर लीला देखते-सुनते रहते थे। उनके विवाह में कोई चूक न रहे, इसके लिए उन्होंने स्वयं विवाह का मुहूर्त निकाला और उसे एक पाती में लिखकर नारद जी के हाथ मिथिलापुरी भिजवा दिया। जनक जी का दरबार लगा था। वहीं नारद जी द्वारा लाई गई पितामह की पाती बांची गई। सब लोग यह देख-सुनकर दंग रह गए कि विवाह का मुहूर्त वही था, जिसे जनक जी के ज्योतिषी पहले ही निकाल चुके थे। इस पर दरबार में मौजूद सब लोग बोल पड़े- अरे, जनक जी के ज्योतिषी तो स्वयं विधाता हैं। कहहिं जोतिषी आहिं विधाता, बाबा तुलसी के रामचरित मानस में यह चौपाई बालकांड में आती हैं।