मंगलवार व्रत: हनुमान जी की कृपा पाने का अचूक उपाय और पुत्र सुख व संकटों से मुक्ति की कथा

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Vedeye Desk

Vrat Katha : भगवान की कृपा पाने के लिए केवल पूजा ही नहीं, बल्कि व्रत भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सप्ताह के हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित होता है, और मंगलवार का दिन महाबली हनुमान जी के नाम होता है. मंगलवार के व्रत से न केवल व्यक्ति के बल, साहस और सम्मान में वृद्धि होती है, बल्कि पुरुषार्थ और लक्ष्यों की प्राप्ति में आने वाली बाधाएं भी दूर हो जाती हैं. हनुमान जी इस व्रत से प्रसन्न होकर जीवन के संकटों को हर लेते हैं. आइए, जानते हैं मंगलवार व्रत की पूजा विधि और इससे जुड़ी प्रेरणादायक कथा.

 मंगलवार व्रत की पूजा विधि:

मंगलवार का व्रत सर्वसुख, राज सम्मान और पुत्र प्राप्ति के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है. इस दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए, जिसमें लाल फूल, लाल वस्त्र और लाल चंदन का विशेष महत्व है. पूजा के दौरान हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ करना अत्यंत शुभ होता है. माना जाता है कि नियमित रूप से मंगलवार का व्रत करने वाला व्यक्ति कुप्रभावों से बचा रहता है. इस व्रत में दिन में एक बार ही भोजन करना चाहिए और व्रतधारी का खानपान भी शुद्ध होना चाहिए.

 मंगलवार व्रत कथा:

एक वृद्धा मां सदैव मंगलवार का व्रत रखती थी. उनका एक पुत्र था जो मंगलवार को पैदा हुआ था. उसे वह मंगलिया के नाम से पुकारती थी. मंगलवार के दिन वह न मिट्टी खोदती और न ही अपने घर को लीपती थी. एक दिन उसकी परीक्षा लेने मंगल देव ब्राह्मण के रूप में वृद्धा मां के घर आये. वृद्धा मां से बोले, “मुझे बहुत भूख लगी है. भोजन बनाना है. तुम जमीन को लीप दो. “यह सुनकर वृद्धा मां बोली, “महाराज आज मंगलवार है मैं जमीन नहीं लीप सकती. कहें तो जल का छिड़काव कर सकती हूं. वहां पर भोजन बना लें. “ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “मैं तो गोबर से लिपे चौके में ही भोजन बनाता हूं. वृद्धा मां ने कहा, “जमीन लीपने के अलावा कोई और सेवा हो तो वह मैं करने के लिये तैयार हूं . “ब्राह्मण बोला, “सोच लो. जो कुछ मैं कहूंगा तुमको करना पड़ेगा.” वृद्धा मां बोली, “महाराज जमीन लीपने के अलावा आप जो भी आज्ञा देंगे उसका मैं अवश्य ही पालन करूंगी. “वृद्धा मां ने ऐसा वचन तीन बार दिया. तब ब्राह्मण बोला, ‘अपने पुत्र को बुलाओ मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊंगा. “ब्राह्मण की बात सुन कर वृद्धा सदमे में आ गई. तब ब्राह्मण बोला, “बुलाओ पुत्र को. अब क्या सोच विचार करती हो.” वृद्धा  मां ने मंगल भगवान का स्मरण कर अपने पुत्र को बुला कर औंधा लिटा दिया और ब्राह्मण की आज्ञा से उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी. उसने ब्राह्मण से कहा, “महाराज! अब आपको जो कुछ करना है कीजिए मैं जाकर अपना काम करती हूं. “ब्राह्मण ने लड़के की पीठ पर रखी हुई अंगीठी में आग जलाई और उस पर भोजन बनाया. जब भोजन बन गया तो ब्राह्मण ने वृद्धा मां से कहा, “अपने पुत्र को बुलाओ. वह भी आकर प्रसाद ले जाये. “वृद्धा दुखी होकर तथा रोकर बोली ‘ब्राह्मण! क्यों हंसी कर रहे हो. उसी की कमर पर अंगीठी में आग जलाकर आपने भोजन बनाया है. वह तो मर चुका होगा.” ब्राह्मण द्वारा आग्रह करने पर वृद्धा मां ने ‘ मंगलिया ‘ कह कर अपने पुत्र को आवाज लगाई. आवाज लगाते ही उसका पुत्र एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया. ब्राह्मण ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा,” माई तेरा व्रत सफल हो गया दया के साथ – साथ तुम्हारे हृदय में अपने इष्ट – देव के लिये अटल निष्ठा एवं विश्वास भी है. तुम्हें कभी भी कोई कष्ट नहीं होगा. तुम्हारा सदा कल्याण ही होगा.

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