इस नवमी को पूजा पाठ दान पुण्य करने का फल होता है अक्षय, इस पेड़ का विधिवत पूजन करने से मिलती पापों से मुक्ति

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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. यूं तो किसी भी पूजा पाठ और दान पुण्य करने का फल तो मिलता ही है किन्तु यदि वह कार्य इस दिन किया जाए तो उसका फल अक्षय अर्थात कभी न खत्म होने वाला हो जाता है. हिंदू धर्म में प्रकृति का विशेष महत्व है और विशेष अवसरों पर विशेष वृक्षों की पूजा का महत्व है जैसे वट सावित्री में बरगद के पेड़ की पूजा का विधान है तो कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. वैसे तो इस पर्व के फल अक्षय होने के कारण इसका नाम अक्षय नवमी है किंतु आंवले के पेड़ की पूजा करने के कारण इसे आंवला नवमी भी कहते हैं. 

इस तरह करना चाहिए पूजन 

धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन गाय, भूमि, कपड़े, स्वर्ण आभूषण आदि का दान करने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं. इस दिन प्रातः जागने और स्नानादि से निवृत्त होने के बाद घर के पास के किसी आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख कर रोली, अक्षत आदि से पूजन करने के बाद पेड़ की जड़ में किसी पात्र से दूध का धारा डालनी चाहिए. इसके बाद पेड़ के चारो ओर कच्चे सूत को लपेट कर घी की बाती या कपूर से आरती करना चाहिए. आरती होने के साथ ही पेड़ की 108 या अपनी क्षमता के अनुसार 11, 21 अथवा 51 बार परिक्रमा करना चाहिए. पूजन सामग्री में आंवला अवश्य ही होना चाहिए. ब्राह्मण-ब्राह्मणी को भोजन और दान दक्षिणा देकर विदा करने के बाद स्वयं भी भोजन करें. भोजन में भी आंवले का होना आवश्यक है और ब्राह्मण को दान में भी आंवला जरूर होना चाहिए. 

आंवला नवमी व्रत की कथा

एक साहूकार था, जो आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दक्षिणा देता था. उसके बेटों को यह सारा कार्य फालतू लगता और वह विरोध करते कि घर की सारी संपत्ति लुटाएं दे रहे हैं. बेटों की रोज-रोज की टोका-टाकी से तंग आकर दूसरे स्थान पर चला गया और वहां एक दुकान लेकर काम धंधा करने लगा. आंवले के पेड़ से प्यार होने के कारण उसने दुकान के सामने ही आंवले का पेड़ लगाया और सुबह शाम उसकी सुरक्षा और सेवा करता रहा. ऐसा करने से उसकी दुकान खूब चलने लगी. उधर धीरे-धीरे बेटों का सारा कारोबार चौपट हो गया, तो उन्हें कारण समझ में आया. बेटे पिता की तलाश करते हुए वहां पहुंचे जहां पर पिता कारोबार कर रहे थे. उन्होंने पिता के पैरों को पकड़ कर क्षमा मांगी. पिता ने उन्हें क्षमा कर आंवले के पेड़ की पूजा करने का आदेश दिया जिससे उनका काम फिर से अच्छा हो गया.

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