Story of Mahabharat : आस्तिक मुनि ने अपनी वाणी के प्रभाव से महाराजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने वाले राजा जनमेजय के यज्ञ को समाप्त करा दिया।
Story of Mahabharat : आस्तिक मुनि ने अपनी वाणी के प्रभाव से महाराजा परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने वाले राजा जनमेजय के यज्ञ को समाप्त करा दिया। इसके बाद जनमेजय ने महाभारत की कथा सुनने की प्रार्थना विद्वतजनों से कही तो भगवान व्यास यानी श्री कृष्ण द्वैपायन ने अपने शिष्य वैशम्पायन ऋषि को कथा सुनाने की आज्ञा दी। वैशम्पायन जी के बारे में प्रसिद्ध था कि उनका कथा सुनाने का तरीका ऐसा है कि सुनने वालों की आंखों के सामने वहां दृश्य ही उपस्थित हो जाता था।
पांडवों के पितामह थे भगवान व्यास
वास्तव में भगवान व्यास जिन्हें वेद व्यास या श्री कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता था, पांडवों के पितामह थे। उनका जन्म शक्तिपुत्र पराशर और सत्यवती के गर्भ से हुआ। उनमें कई विशेषताएं थीं जिनमें पहली जन्मते ही बड़े हो जाना थी। उन्हें वेद और इतिहास का ज्ञान स्वतः ही हो गया। उन्होंने ही वेद को चार भागों में विभक्त किया। पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म उन्हीं की कृपा से हुआ था। राजा जनमेजय द्वारा महाभारत कथा सुनने की इच्छा की जानकारी होते ही वे अपने शिष्यों के साथ यज्ञ मंडप में पहुंचे। उनके पहुंचते ही राजा ने उन्हें स्वर्ण सिंहासन पर बैठा वंश प्रवर्तक मान कर पैरों को धोने के साथ ही अर्ध्य व गाय आदि दान देने के बाद उनके साथ आए शिष्यों का भी यथोचित सम्मान कर कुशल क्षेम पूछी।
जनमेजय ने जानना चाही महाभारत कथा
सभी लोगों का सम्मान करने के बाद राजा जनमेजय व्यास जी के सामने हाथ जोड़ खड़े होकर बोले, भगवन ! आपने कौरवों और पांडवों को आपने अपनी आंखों से देखा है, मैं उनका चरित्र आपके मुख से सुनना चाहता हूं। वे तो धर्मात्मा थे फिर भाइयों से अनबन होने का क्या कारण था। ऐसी कौन सी वजह थी जिसके कारण इतना घोर संग्राम हुआ जिसमें इतनी अधिक मात्रा में प्राणियों का विध्वंस हुआ।
कथा सुनने से मिलती मोक्ष तत्व को पहचानने की बुद्धि
राजा जनमेजय के आग्रह पर भगवान व्यास ने अपने प्रिय शिष्य वैशम्पायन से कहा कि जो कथा पहले मैं तुम्हें सुना चुका हूं, उसे इन्हें विस्तार से सुनाओ कि किस तरह कौरव और पांडवों में फूट पड़ी। वैशम्पायन जी ने अपने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए कहा, पांडवों की यह कथा एक लाख श्लोकों में कही गयी है। इसके वक्ता और श्रोता ब्रह्मलोक में जाकर देवताओं के समकक्ष हो जाते हैं। यह पुराण और वेदों के तुल्य है। इसको सुनने से मोक्ष तत्व को पहचानने की बुद्धि प्राप्त होती है। इसमें धर्म, अर्थ और मोक्ष शास्त्र है। जिससे सुनने से पुत्र सेवक और सेवक स्वामिभक्त हो जाते हैं। मानसिक, शारीरिक और बोलने वाले सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसकी रचना में भगवान व्यास को तीन वर्ष का समय लगा।