Son of Ganga :  गंगातट पर राजा शांतनु एक कुमार की धनुर्विद्या देख कर दंग रह गए, पूछताछ पर जो पता लगा उससे हो गए आश्चर्यचकित

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एक सुंदर और विशालकाय कुमार दिव्य अस्त्रों का अभ्यास कर रहा है और उसने अपने बाणों के प्रभाव से ही गंगा जी के वेग को रोक दिया है।

Son of Ganga : गंगा देवी ने राजा शांतनु को सात पुत्रों को जन्मते ही मारने और आठवें को न मारने का रहस्य बताया और इसके साथ ही आठवें पुत्र को लेकर अंतर्ध्यान हो गयीं। ऋषि वैशम्पायान ने राजा जनमेजय को राजा शांतनु के बारे में बताते हुए कहा कि वे बहुत ही धर्मात्मा और सत्यनिष्ठ थे। उनके राज्य में प्रजा को किसी भी तरह का दुख नहीं था। उनके तेजस्वी शासन को देख कर दूसरे राजा और सामंत भी उनका अनुसरण करने लगे। उनका राज्य तो बहुत विशाल था किंतु राजधानी हस्तिनापुर ही थी। 36 वर्षों तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का निर्वाहन करते हुए राजा ने वनवासी जैसा जीवन व्यतीत किया। 

कुमार ने बाणों से रोक दिया नदी का वेग

महाभारत के आदिपर्व के अनुसार एक दिन राजा शांतनु गंगा नदी के तट पर विचरण कर रहे थे कि उनकी निगाह नदी की ओर गयी। नदी में बहुत कम जल बचा था इस दृश्य को देखकर वे चिंतित हो उठे कि आज देवनदी गंगा अविरल हो कर क्यों नहीं बह रही हैं। उन्होंने इसका कारण जानने की कोशिश की तो पता लगा कि एक सुंदर और विशालकाय कुमार दिव्य अस्त्रों का अभ्यास कर रहा है और उसने अपने बाणों के प्रभाव से ही गंगा जी के वेग को रोक दिया है। यह अलौकिक कर्म देख कर वे आश्चर्यचकित हो गए। उस कुमार ने राजा को मोहित कर दिया और जब तक वे कुछ समझ पाते, वो कुमार वहां से अंतर्ध्यान हो गया। 

शांतनु के आग्रह पर गंगादेवी पुत्र के साथ आईं

राजा शांतनु ने गंगा जी के तट पर खड़े होकर उनसे प्रार्थना की कि उस कुमार को दिखाओ। गंगा जी सुंदर रूप धारण कर उस कुमार का दाहिना हाथ पकड़ कर सामने प्रकट हुईं, उस बालक की छवि देखते ही बनती थी जिसके कारण राजा उसे अपलक देखते रहे। इस बीच गंगा जी उनसे बोलीं, महाराज यह आपका आठवां पुत्र है जो मुझसे पैदा हुआ था। आप इसे अपने साथ ले जाइए, इसने ऋषि वशिष्ठ से वेदों का शुरु से अंत तक अध्ययन कर लिया है। अस्त्रों का अभ्यास भी पूरा हो चुका है। यह श्रेष्ठ धनुर्धर युद्ध में देवराज इंद्र के समान है। इसके अलौकिक गुण के कारण देवता और असुर भी इसका सम्मान करते हैं। 

परशुराम की तरह शस्त्रों का ज्ञाता बना गंगानंदन 

गंगादेवी ने अपने पुत्र के गुणों की विशेषता बताते हुए कहा, हे राजन ! देवगुरु बृहस्पति और दैत्यगुरु शुक्राचार्य जितनी विद्याएं जानते हैं, यह भी सबकुछ जान चुका है। स्वयं भगवान परशुराम को जिन शस्त्रों का ज्ञान है, उन्हें भी यह अच्छी तरह से जान चुका है। आप इस धर्म निपुण धनुर्धर वीर को अपने साथ राजधानी में ले जाएं। मैं इसे आपको सौंप रही हूं। मैंने आपके इस बालक का नाम देवव्रत रखा है। राजर्षि शांतनु गंगानंदन देवव्रत को अपने साथ ले आए और जल्द ही युवराज के पद पर आसीन कराया।

  

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