वास्तव में गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से संसार को गीता का उपदेश दिया था।
Shrimad Bhagwat Geeta : जन्माष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण के तत्व को समझने के लिए उनके जन्मसार को समझने के साथ गीता को भी समझना जरुरी है। वास्तव में गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से संसार को गीता का उपदेश दिया था। कृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश उस समय दिया जब युद्ध भूमि में चारो ओर अपने ही लोगों को देख उनके पैर डगमगाने और हाथ कांपने लगे थे। ये तो श्री कृष्ण के उपदेशों का ही प्रभाव था कि अर्जुन अपने लक्ष्य को पूरा करने की ओर अग्रसर ही नहीं हुए बल्कि भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य जैसे महान योद्धाओं के साथ युद्ध करते हुए विजय भी हुए। इसलिए कहा जाता है कि गीता में जीवन की हर एक परेशानी का हल मिल जाता है। श्री कृष्ण की बातें असमंजस में पड़े व्यक्ति को आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती हैं।
पुरुषोत्तम का शाब्दिक अर्थ है पुरुषों में उत्तम संस्कृत में पुरुष का अर्थ मनुष्य और उत्तम का अर्थ सर्वश्रेष्ठ है अर्थात सर्वश्रेष्ठ पुरुष
पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण
श्री मद्भगवदगीता में व्यास जी ने श्रीकृष्ण को पुरुषोत्तम के रुप में ही संबोधित किया है। वास्तव में पुरुषोत्तम का शाब्दिक अर्थ है पुरुषों में उत्तम, संस्कृत में पुरुष का अर्थ मनुष्य और उत्तम का अर्थ सर्वश्रेष्ठ है अर्थात सर्वश्रेष्ठ पुरुष। इसे और स्पष्ट किया जाए तो ऐसा प्राणी जो पूर्णता को प्राप्त हो और ऐसे केवल योगेश्वर श्री कृष्ण ही हैं। भगवान श्री कृष्ण ने भगवत गीता के 15 वें अध्याय के 18 वें श्लोक में स्वयं ही अपने बारे में स्पष्ट किया है कि मैं पुरुषोत्तम क्यों हूं। इस श्लोक में वे कहते हैं कि मैं क्षर से अतीत अर्थात नाशवान से पूर्व का और अक्षर से उत्तम अर्थात अविनाशी से भी उत्तम हूं। यही कारण है कि लोक और वेदों में मैं पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाता हूं। यहां पर क्षर का अर्थ प्रकृति है यानी प्रति क्षण परिवर्तनशील है किंतु भगवान कहते हैं कि मैं तो नित्य निरन्तर निर्विकार रूप से जैसा हूं वैसा ही रहने वाला हूं। बस इसीलिए क्षर से सर्वथा अतीत हूं। श्लोक में अक्षर अर्थात अविनाशी जिसे जीवात्मा में भी कहते हैं के बारे में भगावन श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मैं अक्षर से भी उत्तम हूं। भगवान कहते हैं कि वे क्षर और उत्तम दोनों से परे हैं।
परम तत्व का मर्म
भगवान श्री कृष्ण सर्वगुह्यतम परम तत्त्व हैं। वे अर्जुन से कहते हैं कि अब मैं जो बात तुम्हें बताने जा रहा हूं वह अत्यंत गोपनीय है लेकिन तुम मेरे सर्वाधिक प्रिय हो इसलिए बता रहा हूं क्योंकि यह बात सबके सामने व्यक्त करने वाली नहीं है लेकिन एक बात का विशेष ध्यान रखना कि यह बात कभी किसी असहिष्णु और अभक्त व्यक्ति से न कहना। उन्होंने कहा कि मैं ही परम तत्व हूं इसलिए हर तरह की चिंता छोड़ कर सिर्फ मुझ पर आश्रित हो जाओ। भगवान कह रहे हैं कि जो व्यक्ति सब कुछ छोड़ कर मुझ पर पूरी तरह से आश्रित हो जाता है तो मैं भी उसका हर प्रकार से हित करता हूं।
साकार और निराकार सिर्फ साधकों की सोच
भगवान ने अपने को ब्रह्मा की प्रतिष्ठा बताते हुए स्पष्ट किया कि मैं साकार हूं तो ब्रह्म निराकार हैं लेकिन ये दोनों रूप साधकों की दृष्टि से भले ही अलग-अलग हों किंतु दोनों एक ही तत्व हैं। संतों ने भगवान के इन शब्दों को और भी स्पष्ट करते हुए बताया कि जैसे भोजन की सुगंध का अहसास नाक के माध्यम से होता है तो स्वाद के बारे में जीभ से जानकारी मिलती है जबकि भोजन एक ही है। इसी तरह साकार और निराकार ईश्वर एक है और वह मैं ही हूं।
समस्याओं का समाधान गीता
श्री मद्भगवदगीता न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह मनुष्य को जीवन के दुखों से उबरने का तरीका भी सिखाती है। नित्य गीता पाठ और उस पर मनन कर व्यक्ति जीवन की प्रत्येक समस्या का सामना करने में सक्षम हो जाता है साथ ही अहम का भाव समाप्त होता है क्योंकि गीता का यही संदेश है कि कर्म करो और फल मुझ पर छोड़ दो। ऐसा चिंतन आते ही मानसिक शांति मिलती है।