
Shri Mayureshwar Ganapati Temple : पुणे के मोरगांव क्षेत्र में मयूरेश्वर विनायक का मंदिर है. मंदिर के चारो कोनों में मीनारें और पत्थरों की दीवारें और चार द्वार हैं जिन्हें चारो युग यानी सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग का प्रतीक माना जाता है. यहां पर मयूरेश्वर विनायक बैठी मुद्रा में हैं जिनकी सूंड़ बाईं ओर चार भुजाएं व तीन नेत्र हैं. साथ में शिव जी के प्रिय नंदी भी विराजमान हैं. इसी स्थान पर गणेश जी ने मोर पर सवार होकर सिंधुरासुर नाम के असुर का वध किया था, जिसके कारण उन्हें मयूरेश्वर कहा जाने लगा. कुछ लोग इन्हें मोरेश्वर गणपति भी कहते हैं जो महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिरों में से एक माना जाता है.
मयूरेश्वर गणपति मंदिर का इतिहास
मयूरेश्वर गणपति मंदिर एक महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसने पेशवाओं के शासन में भव्य रूप प्राप्त किया. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश का जन्म त्रेता युग में पार्वती के गर्भ से लेण्याद्री गुफाओं में हुआ था. भगवान ने सुंदर मयूरेश्वर का रूप धारण किया जिनकी छह भुजाए और मोर पर सवार थे. बचपन में गणेश जी को पेड़ों पर चढ़ने का शौक था, एक दिन गलती से उनसे एक अंडा गिर गया जिससे एक मोर निकला बस बाल गणेश उसी पर सवार हो गए. सिंधुरासुर राक्षस का वध करने के बाद भगवान गणेश ने अपना वाहन मोर अपने भाई भगवान कार्तिकेय को भेंट कर दिया.
