Vishweshwari Godavaritir Shakti Peeth : आंध्र प्रदेश में पवित्र गोदावरी के तट पर इस शक्तिपीठ के साथ जुड़ी हैं कई मान्यताएं, जानें गौतम ऋषि का कनेक्शन 

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Vishweshwari Godavaritir Shakti Peeth : आंध्र प्रदेश में पवित्र गोदावरी के तट पर इस शक्तिपीठ के साथ जुड़ी हैं कई मान्यताएं, जानें गौतम ऋषि का कनेक्शन 

Vishweshwari Godavaritir Shakti Peeth : आंध्र प्रदेश में राजमुंदरी के निकट गोदावरी तट पर  कुब्बूर में स्थित शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि यहां पर माता सती का वामगण्ड यानी बायां गाल भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कट कर उस समय गिरा था, जब शिव जी उनका शव लेकर तांडव कर रहे थे. इस शक्तिपीठ को सर्वशैल या विश्वेश्वरी शक्तिपीठ भी कहा जाता है. इस मंदिर का नाम कोटिलिंगेश्वर मंदिर है. पुराणों के अनुसार सती के अंग और आभूषण, वस्त्र आदि जहां-जहां गिरे थे, वे स्थान बाद में शक्तिपीठ यानी पावन तीर्थ के रूप में अस्तित्व में आए. इस शक्तिपीठ की देवी विश्वेश्वरी या रुक्मिणी कहलाती हैं और यहां के शिव दण्डपाणि हैं. गोदावरी नदी भारत की सबसे लंबी नदियों में से एक है, जिस तरह उत्तर भारत में पवित्र गंगा नदी का महत्व है उसी तरह दक्षिण भारत में गोदावरी नदी का. मान्यता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य के पाप धुल जाते हैं बशर्ते फिर वह जाने अनजाने पाप का रास्ता छोड़ दे. मंदिर में दर्शन करने वाले भक्तों को देवी मनवांछित फल देती हैं. 

वास्तुकला से प्राचीनता का बोध

इस शक्तिपीठ का निर्माण कब और किसने कराया इसकी सटीक जानकारी तो किसी के पास नहीं है किंतु पुराणों में वर्णित 51 शक्तिपीठों में इस स्थान का उल्लेख है. चैतन्य महाप्रभु और बलदेव जी ने गोदावरी नदी के किनारे स्नान किया मंदिर में दर्शन करने का जिक्र कुछ धर्मग्रंथों में है. गोदावरी तीर या सर्वशैल शक्ति पीठ की वास्तुकला इसके अत्यंत प्राचीन होने की कहानी स्वयं ही कहती है. इस राजसी मंदिर के विशाल गोपुरम में देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तियां हैं. इस शक्तिपीठ में सभी त्योहार विशेष श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं. शिवरात्रि और चैत्रीय तथा शारदीय नवरात्र में सुंदर फूलों की सजावट मन को मोह लेती है. यहां की रंग बिरंगी रोशनी आध्यात्मिक वातावरण को बढ़ाने का कार्य करती है. 

Vishweshwari Godavaritir Shakti Peeth आंध्र प्रदेश में पवित्र गोदावरी के तट पर इस शक्तिपीठ के साथ जुड़ी हैं कई मान्यताएं जानें गौतम ऋषि का कनेक्शन
प्रसिद्ध पुष्करम मेला इस शक्तिपीठ का प्रमुख आकर्षण है जिसमें देश दुनिया से देवी भक्त जुटते हैं

पुष्करम मेला अवसर पर दुनिया भर से जुटते देवी भक्त 

प्रसिद्ध पुष्करम मेला इस शक्तिपीठ का प्रमुख आकर्षण है जिसमें देश दुनिया से देवी भक्त जुटते हैं. प्रत्येक 12 वें वर्ष गोदावरी तट पर लगने वाला उत्सव कुंभ से किसी भी मायने में कम नहीं है. पुष्करम मेला हिंदू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है. इस पर्व पर भक्त पवित्र गोदावरी में स्नान करने के बाद शक्तिपीठ में देवी दर्शन करते हैं. महाकुंभ की तरह प्रत्येक 144 वर्षों में महा पुष्करम मेला लगता है. इस मेले का सीधा संबंध ग्रहों की चाल से है. आषाढ़ मास में जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि में प्रवेश करते हैं तभी से मेला प्रारंभ होता है. सामान्य तौर पर यह तिथि चतुर्दशी को होती है. यूं तो मेला पूरे वर्ष चलता है किंतु आषाढ़ मास में मेला के शुरुआती 12 दिन का पुण्य बहुत अधिक माना गया है. 

गोदावरी की कथा ऋषि गौतम से जुड़ी

गोदावरी नदी के उद्गम की कथा ऋषि गौतम से भी जुड़ी है. पौराणिक कथा के अनुसार वे अपनी पत्नी अहिल्या के साथ त्रयंबकेश्वर के ब्रह्मगिरी पर्वतों में रहते थे. ऋषि गौतम ने एक गाय को भगाने का प्रयास किया जो उनके अन्न भंडार में रखे सारे चावल खा गई थी. दुर्बा घास से भगाते समय गाय की मृत्यु हो गयी. तब ऋषि ने भगवान शिव का ध्यान किया और गोहत्या के पाप से मुक्ति की इच्छा जताई. उन्होंने भगवान शिव से अपने आश्रम को पवित्र करने के लिए वहां पर गंगा नदी की मांग की. भगवान शिव ने उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए गोदावरी नदी का उद्गम किया. 

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