Shri Bhaktamal : असुरों के साथ संग्राम में अंततः देवताओं की विजय हुई और इंद्र का स्वर्ग के सिंहासन पर फिर से अभिषेक हुआ। विजय के गर्व में देवता उन भगवान को ही भूल गए जिनके कारण उन्हें विजय मिली थी और विषयों के भोग में लिप्त हो गए। इधर हारे हुए दैत्य अपना बल फिर से बढ़ाने में लग गए, दैत्य गुरु शुक्राचार्य तो उनकी मदद में लगे ही थे, भृगुवंशी ब्राह्मण भी उन्हें सहयोग करने लगे क्योंकि दैत्यों की सेवा सम्मान से वे प्रसन्न थे।
गुरु शुक्राचार्य और भृगुवंशी ब्राह्मणों ने राजा बलि से विश्वजित यज्ञ कराया तो यज्ञ में अग्निदेव स्वयं उपस्थित हुए और उन्होंने रथ घोड़ों के साथ ही उन्हें आशीर्वाद भी दिया। शुक्राचार्य ने दिव्य शंख और प्रपितामह प्रह्लाद ने उन्हें दिव्य माला दी। अब शक्तिशाली होकर बलि ने अमरावती को घेर लिया तो इंद्र व अन्य देवता स्वर्ग छोड़ कर कहीं छिप गए। विश्वविजयी होने पर भृगुवंशियों ने राजा बलि से सौ अश्वमेध यज्ञ कराए। प्राप्त राजलक्ष्मी का उपभोग करते हुए उदारता के साथ वे दान भी करते रहे। अपने पुत्रों हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु का ऐश्वर्य और राज्य छिन जाने से माता अदिति ने दुखी हो पति कश्यप जी को याद किया तो उन्होंने पयोव्रत अर्थात दूध पर आधारित उपवास करने की सलाह दी। फाल्गुन मास में होने वाले 12 दिन के इस व्रत को करने भगवान विष्णु की कृपा के फलस्वरूप संतान की प्राप्ति होती है। अदिति ने पति की आज्ञा से व्रत किया तो भगवान विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए और बोले, ब्राह्मण और ईश्वर बलि के अनुकूल हैं इसलिए उसे जीता ही नहीं जा सकता है। मैं अंशरूप में तुम्हारा पुत्र बन कर तुम्हारी संतानों की रक्षा करूंगा। फिर महर्षि कश्यप और अदिति के गर्भ से विष्णु जी के अंशरूप में बालक ने जन्म लिया। देखते ही देखते वो बालक वामन रूपी ब्रह्मचारी बन गया। सभी देवताओं ने उन्हें दिव्य उपहार दिए।
इसी बीच वामन देव को पता लगा कि यशस्वी, महाबली व महादानी बलि नर्मदा नदी के तट पर अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं तो वामन देव हाथ में छत्र, दंड और जल से भरा कमंडल लेकर वहां पहुंच गए। राजा बलि के पिता विरोचन की उदारता, पितामह प्रह्लाद की भक्ति निष्ठा, प्रपितामह हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के पराक्रम की प्रशंसा की। राजा बलि ने प्रसन्नता पूर्वक उनका अभिनंदन करते हुए कहा, हे ब्राह्मण कुमार ! आप जो भी चाहते हों मुझसे मांग सकते हैं। इस पर उन्होंने सिर्फ तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने हाथ में जल लेकर भूमि दान का संकल्प लिया तो वामन ने अपने शरीर का आकार बहुत बड़ा कर लिया और एक पग में ही पूरी पृथ्वी नाप ली। दूसरे पग से स्वर्ग नाप कर वे राजा बलि से बोले, राजन दो पगों में मैंने पृथ्वी और आकाश को नाप लिया है अब तीसरा पग कहां रखूं।
तब तक बलि समझ गए के ये तो भगवान विष्णु ही हैं जो वामन के रूप में मेरे सामने भिक्षा मांगने आए हैं, इसलिए अपना सिर उनके सामने करते हुए बोला, भगवन आप तीसरा पग मेरे सिर पर रखें क्योंकि मैं भी तो आपका ही हूं। उन्होंने सिर पर तीसरा पग रखते हुए राजा बलि को पाताल लोक का राजा बनने की आज्ञा दी। बलि ने शरणागत होते हुए कहा कि बिना आपके मैं पाताल लोक को कैसे संभाल सकूंगा। इस पर वामन अवतार भगवान विष्णु उसके राज्य के द्वारपाल बन गए और इंद्र को उनका स्वर्गलोक लौटा दिया।