#image_title“श्री भक्तमाल” के अनुसार भगवान विष्णु का छठा अवतार भगवान परशुराम हैं जो यमदग्नि और रेणुका के आठवें पुत्र के रूप में जन्मे थे।
Shri Bhaktamal : “श्री भक्तमाल” के अनुसार भगवान विष्णु का छठा अवतार भगवान परशुराम हैं जो यमदग्नि और रेणुका के आठवें पुत्र के रूप में जन्मे थे। एक बार उनके पिता यमदग्नि ऋषि ने उनकी मां को नदी से जल लाने के लिए भेजा। नदी में गंधर्व और गंधर्वियां जल क्रीड़ा कर रहे थे जिन्हें जल लेने गयीं रेणुका भी देखने लगीं और इसी कारण उन्हें जल लेकर आश्रम पहुंचने में देरी हो गयी। ऋषि ने योग बल से देरी का कारण जान लिया। उन्होंने विचार किया कि किसी महिला को पर पुरुष की इस तरह की क्रीड़ा को नहीं देखना चाहिए क्योंकि यह महापाप की श्रेणी में आता है। बस इस विचार के आते ही उन्होंने अपने बड़े पुत्र को बुलाया और मां की हत्या करने का आदेश दिया। एक-एक कर उन्होंने सातों पुत्रों को बुलाकर यह बात कही किंतु सातों ने इस कार्य को करने से इनकार कर दिया क्योंकि मां के स्नेह के कारण वो इस कार्य को करने का साहस नहीं जुटा सके। इसके बाद ऋषि ने अपने आठवें पुत्र परशुराम को बुलाया और कहा कि इन सब भाइयों सहित तुम माता का वध कर दो। परशुराम ने आदेश का पालन करने में तनिक भी देर न लगायी और मां सहित सातो भाइयों की हत्या कर दी। इस कार्य से प्रसन्न हो कर ऋषि यमदग्नि ने वर मांगने को कहा। परशुराम ने अपने पिता से कहा कि यदि आप आदेश का पालन करने से प्रसन्न हैं तो मेरी मां और सभी भाइयों को इस तरह पुनर्जीवित कर दीजिए कि इन्हें पता भी न लगे कि मैंने इन्हें मारा था। मुझे पाप का स्पर्श न होने पाए और साथ ही मुझे ऐसा बल प्रदान करिए कि युद्ध में कोई भी मेरी बराबरी न कर सके तथा दीर्घकाल तक जीवित रहूं। पिता ने प्रसन्न होकर सभी वर दिए।
परशुराम जी के जीवन की एक और कथा के अनुसार माहिष्मती नगरी के राजा सहस्रार्जुन थे। उन्होंने भगवान दत्तात्रेय का तप कर उनसे वर प्राप्त किया कि युद्ध में कोई उनका सामना न कर सके और युद्ध के समय उनकी हजार भुजाएं हो जाएं, जहां भी चाहें जा सकें। इस वर को पाने के बाद वो मदमस्त हो गए और देवता ऋषि तथा यक्ष आदि का आदर करना तो दूरे उन्हें कुछ भी न समझने लगे। एक बार सहस्रार्जुन ने अपने धनुष से ऐसे बाण छोड़े कि पूरा समुद्र ही उन बाणों से ढ़क गया। समुद्र ने सामने आकर सेवा पूछी तो उसने कहा संसार में क्या कोई ऐसा वीर है जो उसका मुकाबला कर सकने में समक्ष हो। समुद्र ने महर्षि यमदग्नि के पुत्र परशुराम का नाम बताया तो सहस्रार्जुन अगले ही पल उनके आश्रम पहुंच गया।
ऋषि यमदग्नि ने उसका खूब आदर सत्कार किया तो सहस्रार्जुन उनके ऐश्वर्य के बारे में विचार करने लगा। उनके पास कामधेनु गाय होने की जानकारी पर उसकी मांग कर दी और न देने पर उसने महर्षि की हत्या कर गाय को छीन लिया। जब आश्रम में परशुराम लौटे तो मां को विलाप करते पाया, पूछने पर जैसे ही मां ने बताया कि माहिष्मती के राजा सहस्रार्जुन ने यह सब किया है तो वे क्रोधित हो गए। परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन करने का संकल्प लिया और फरसा लेकर चल पड़े। कहते हैं उनकी मां ने विलाप में 21 बार छाती पीटी थी इसलिए परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का संहार किया। इसके बाद अश्वमेध यज्ञ में जीती हुई संपूर्ण पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान करने के साथ ही तप से प्राप्त् अपने अस्त्र-शस्त्र भी दान कर दिए। महर्षि कश्यप के आदेश पर दक्षिण में समुद्र की ओर चले गए। समुद्र ने अपने अंदर स्थित महेन्द्र पर्वत पर उन्हें रहने का स्थान दिया। परशुराम जी चिरंजीवी हैं और किसी-किसी भाग्यशाली को उनके दर्शन हो जाते हैं।