Shravan Maas 2025 : भगवान शंकर को सर्वाधिक प्रिय है सावन का महीना, इस माह में रोज रुद्राभिषेक करने से मिलती है उनकी कृपा

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सावन के महीने को शिव जी का महीना भी कहा जाता है क्योंकि इस पूरे महीने में भगवान शिव की आराधना की जाती है।

Shravan Maas 2025: सावन के महीने को शिव जी का महीना भी कहा जाता है क्योंकि इस पूरे महीने में भगवान शिव की आराधना की जाती है। वर्ष के 12 महीनों में इस माह का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि इसकी महिमा स्वयं भोलेशंकर ने बतायी है। एक बार सनत्कुमार के प्रश्न करने पर शिव जी ने स्वयं कहा कि श्रावण मास मुझे सभी मासों में सर्वाधिक प्रिय है। इस मास में श्रवण नक्षत्र से जुड़ी हुई पूर्णिमा होती है। इसी कारण इसे श्रावण मास कहा जाता है। इस मास का महात्म्य सुनने मात्र से सिद्धियां मिलती हैं। आकाश के समान निर्मल होने के कारण इस माह को नभा भी कहा जाता है। भगवान शिव ने कहा कि इस महीने की हर तिथि व्रत और हर दिन पर्व होता है, इसलिए इस महीने नियम-संयम से रहते हुए पूजा करने से शक्ति और पुण्य बढ़ते हैं। मनुष्यों को चाहिए कि इस माह में प्रतिदिन रुद्राभिषेक करने के साथ ही पूरे महीने अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग करना चाहिए। शिवलिंग पर फूल, फल,  अनाज, तुलसी दल उसकी मंजरी और बेलपत्र आदि का अर्पण करना चाहिए। पंचामृत से अभिषेक भी मुझे प्रिय है।  

सावन के महीने में किए जाने वाले व्रत

भोलेनाथ ने सनत्कुमार को श्रावण मास का महत्व बताने के बाद इस माह में करने योग्य व्रतों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सावन माह में रविवार को सूर्य व्रत और सोमवार को शिव जी का व्रत करना चाहिए। सावन के पहले सोमवार से शुरु कर साढ़े तीन माह का रोटक व्रत करना चाहिए जिसे रोट तीज भी कहा जाता है जो शिव और पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को करने वाले की सभी मनोकांक्षाएं पूरी होती हैं। मंगलवार को मंगलगौरी, बुध और बृहस्पतिवार को बुध व गुरु का व्रत, शुक्रवार को जीवन्तिका, शनिवार को हनुमान व नृसिंह का व्रत बताया गया है। 

सावन महीने में जहां तक तिथियों के अनुसार व्रत का विधान है, उसके अनुसार शुक्ल पक्ष की द्वितीया को औदुम्बर, तृतीया को गौरी, चतुर्थी को दूर्वागणपति व्रत करना चाहिए। पंचमी तिथि को नागों का पूजन करना उचित रहता है। षष्ठी को सुपौदन, सप्तमी को शीतला, अष्टमी या चतुर्दशी को देवी का पवित्रारोपण व्रत करना ठीक रहता है। शुक्ल और कृष्ण पक्ष की नवमी को नक्त व्रत तथा शुक्ल पक्ष की दशमी को आशा जबकि दोनों पक्षों में एकादशी का व्रत परम पुण्यदायी है। द्वादशी को भगवान विष्णु का पवित्रारोपण, और भगवान श्री धर की पूजा करने से मनुष्य को परमगति प्राप्त होती है। 

तिथियों के देवता

स्कन्दपुराण के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के देवता अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया की गौरी तथा चतुर्थी के देवता गणपति हैं। पंचमी के देवता नाग, षष्ठी के देवता कार्तिकेय, सप्तमी के सूर्य तथा अष्टमी तिथि के देवता शिव जी हैं। नवमी की देवी दुर्गा, दशमी के देवता यम, एकादशी के देवता विश्वेदेवा बताए गए हैं। द्वादशी के विष्णु, त्रयोदशी के देवता कामदेव, चतुर्दशी के देवता शिव और पूर्णिमा के देवता चंद्रमा तथा अमावश्या के देवता पितर हैं। इन तिथियों के अनुसार ही देवताओं का पूजन करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। 

  

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1 COMMENT

  1. सर्वप्रथम जय शिव ओंकारा…..

    आदरणीय सर सावन माह के प्रथम दिन आपके द्वारा इस लेख से बहुत कुछ ज्ञात हुआ। सावन माह का महत्व,शिव जी का प्रिय माह और इस माह व्रतों का महत्व और कौन कौन से व्रत होगें साथ ही साथ तिथियों के देवता का भी वर्णन सरल शब्दों द्वारा उल्लेख किया गया है।

    सावन माह की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं

    आभार 🙏
    पीयूष मिश्रा
    एक पाठक
    कानपुर नगर

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