इधर शकुन्तला के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ जो अत्यंत सुंदर और बचपन से ही हृष्ट पुष्ट था।
Shakuntala Reaches with Son : कण्व ऋषि के आश्रम में शकुन्तला से गंधर्व विवाह और संसर्ग करने के बाद राजा दुष्यंत अपने राज्य में लौट गए। इधर शकुन्तला के गर्भ से पुत्र का जन्म हुआ जो अत्यंत सुंदर और बचपन से ही हृष्ट पुष्ट था। महर्षि ने उसका जात कर्म सहित अन्य संस्कार विधिपूर्वक संपन्न किए। ऊंचा मस्तक, शेर के समान मजबूत कंधे, सफेद और नुकीले दांतों वाला वह बालक कोई देवकुमार लगता था जिसके दोनों हाथों में चक्र बना था। अभी वह छह वर्ष का ही हुआ था कि शेर, चीता, सुअर और हाथी आदि को पकड़ कर आश्रम के पेड़ों से बांध देता था। वह इन पशुओं से डरने के बजाय खेलता था। हिंसक पशुओं का दमन होता देख आश्रम वासियों ने उसका नाम सर्वदमन रख दिया।
पुत्र को पिता से मिलाने चली शकुन्तला
बालक बड़ा ही पराक्रमी, ओजस्वी और बलवान था, उसके अलौकिक कर्म देख कर महर्षि कण्व ने शकुन्तला को बुला कर कहा कि अब यह युवराज होने के योग्य हो गया है। इस पर उन्होंने अपने शिष्यों को आज्ञा दी कि शकुन्तला को उसके पुत्र के साथ उसके पति राजा दुष्यंत के घर पहुंचा दो। उन्होंने यह भी कहा कि कन्या का बहुत अधिक समय तक मायके में रहना कीर्ति, चरित्र और धर्म के लिए उचित नहीं रहता है। शिष्य दोनों को लेकर हस्तिनापुर की ओर चल पड़े।
अरे ये क्या हुआ, दुष्यंत ने पहचाना ही नहीं
राजा को सूचना देने और उनकी स्वीकृति मिलने के बाद शकुन्तला अपने पुत्र सर्वदमन के साथ राजसभा में पहुंची। सम्मानपूर्वक राजा से निवेदन किया, राजन ! यह आपका पुत्र है। अब आप अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इसे युवराज बनाइए। जंगल से वापस आकर राजा दुष्यंत सब भूल चुके थे कि उन्होंने किसी युवती से गंधर्व विवाह भी किया है इसीलिए वह शकुन्तला पर क्रोधित होकर बोले, मुझे तो याद नहीं कि मेरा तेरे साथ किसी तरह का संबंध है। तुझे जहां समझ में आए वहां जा किंतु यहां से हट। इतना सुनते ही शकुन्तला सुध-बुध खो बैठी और आंखें लाल हो कर ओंठ फड़भड़ाने लगे।
शकुन्तला का निवेदन
थोड़ी देर ठहर कर शकुन्तला बोली, महाराज ! आप जानबूझ कर ऐसा क्यों कह रहे हैं कि मैं नहीं जानता। ऐसी बातें तो नीच लोग ही करते हैं आपका दिल सच और झूठ अच्छी तरह से जानता है। यह तो बहुत बड़ा पाप है। आपको लग रहा है कि उस घटनाक्रम का कोई गवाह नहीं है किंतु परमात्मा हर बात का गवाह है। जिस पर अंतर्यामी संतुष्ट नहीं होते हैं उसे यमराज दंड देते हैं। स्वयं अपनी आत्मा का तिरस्कार करने वाले का साथ तो देवता भी नहीं देते हैं। मैं स्वयं आपके पास आपके पुत्र को लेकर आई हूं, ऐसा समझ कर आप मुझ पतिव्रता का तिरस्कार न करें। यदि आप मेरी उचित याचना पर ध्यान नहीं देंगे तो आपके सिर के सैकड़ों टुकड़े हो जाएंगे। शकुन्तला ने आगे कहा, सदाचारी पुरुषों की संतानें पूर्वजों और पिता को भी तार देती हैं। इसीलिए संतान को पुत्र कहते हैं और पुत्र से स्वर्ग तथा पौत्र से उसकी अनन्तता प्राप्त होती है, प्रपौत्र से तो बहुत सी पीढ़ियां तर जाती हैं।