Saniswaran Temple : पुडुचेरी के इस मंदिर में काले कपड़े पहनकर, तेल स्नान करने वाले व्यक्ति को मिलती है साढ़े साती से मुक्ति, जाने क्या है इसके पीछे का रहस्य!
Saniswaran Temple : शनिश्वर भगवान का मंदिर केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के कराईकल जिले के थिरुनल्लर गांव में स्थित है.
Saniswaran Temple : शनिश्वर भगवान का मंदिर केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के कराईकल जिले के थिरुनल्लर गांव में स्थित है. धार्मिक मान्यता के अनुसार शनि दोष, दुर्भाग्य और विपत्तियों को कम करने का यह केंद्र माना जाता है, जहां पर भक्त शनिवार के दिन शनि देव की पूजा कर आशीर्वाद की कामना करते हैं ताकि जीवन के कष्टों को कम कर सकें. माना जाता है कि शनि देव ने इस मंदिर में भगवान शिव के सामने अपनी शक्तियां खो दी थीं.
नवीं शताब्दी की संरचना
इसे धरबरण्येश्वर या तिरुनल्लर शनिश्चरन मंदिर भी कहा जाता है. करीब दो एकड़ के क्षेत्र में फैले मंदिर परिसर में पांच मंजिला गोपुरम से प्रवेश किया जाता है. परिवर में ही भगवान शिव के धरबरण्येश्वर, उनकी पत्नी मां पार्वती का प्राणेश्वरी अम्मन और सोमस्कंद मंदिर भी हैं, जिसमें भगवान शिव और पार्वती जी के साथ ही उनके पुत्र गणेश जी यानी मुरुगन स्वामी की संयुक्त प्रतिमा भी है. मंदिर कितना पुराना है, यह कहना तो मुश्किल है किंतु वर्तमान चिनाई संरचना नवीं शताब्दी में चोल शासकों द्वारा बनाई गई बतायी जाती है जबकि बाद में मंदिर के विस्तार का श्रेय विजय नगर शासकों को दिया जाता है.
मंदिर में यूं तो दिन भर कई अनुष्ठान होते हैं किंतु यहां का प्रमुख पर्व शनिपेयर्ची है जो प्रत्येक ढाई वर्ष के अंतराल में मनाया जाता है
प्रति ढाई वर्ष में शनिपेयर्ची है प्रमुख पर्व
मंदिर में यूं तो दिन भर कई अनुष्ठान होते हैं किंतु यहां का प्रमुख पर्व शनिपेयर्ची है जो प्रत्येक ढाई वर्ष के अंतराल में मनाया जाता है. माना जाता है कि इसका संबंध शनि की साढ़े साती से है. किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में शनि की साढ़े साती लगती है जिसके तीन चरण होते हैं अर्थात किसी भी राशि में शनिदेव ढाई वर्ष तक रहते हैं. साढ़े साती का पहले ढाई वर्ष को शुरुआती माना जाता है जबकि दूसरा ढाई वर्ष का मध्य चरण कहलाता है. तीसरा और अंतिम चरण भी ढाई साल का होता है. मान्यता है कि ज्योतिष के अनुसार जिस व्यक्ति की राशि पर साढ़े साती लगी हो, उसे इस पर्व में शामिल होना चाहिए ताकि शनि का प्रकोप कम हो सके.
राजा नल ने भी की शनिदेव की पूजा
एक कथा के अनुसार इस क्षेत्र राजा नल का शासन था जो एक विशेष घास दरबा से भरा हुआ था, जिसके कारण इसे दरबारण्यम यानी दरबा का जंगल कहा जाने लगा. राजा नल भी शनि की चाल से पीड़ित हुए तो उनके नकारात्मकता आ गयी. इसके प्रभाव स्वरूप उन्होंने साफ सफाई के नियमों को ही छोड़ दिया. कहा जाता है कि शनि ग्रह के शाप से खुद को मुक्त करने के लिए उन्होंने उस अवधि में मंदिर में ही निवास किया. उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि जो भक्त इस मंदिर में आएं, शनिदेव उनकी रक्षा करें और कष्टों से मुक्ति प्रदान करें. यही कारण है कि साढ़े साती से पीड़ित लोग नल तीर्थम मंदिर के टैंक में तेल के साथ पवित्र डुबकी लगाते हैं और काले कपड़े पहनते हैं.