Revenge of Father’s Death : जानिए किस तरह राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का लिया बदला, तक्षक नाग ने डर कर कहां ली शरण 

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राजा ने हाथ में जल लेकर प्रतिज्ञा की, जिस तक्षक नाग के डसने से पिता की मृत्यु हुई है उससे हर हाल में बदला लेंगे चाहिए इसके लिए कुछ भी करना पड़े।

Revenge of Father’s Death : अपने राज्य के मंत्रियों से पिता महाराज परीक्षित की मृत्यु का ब्यौरा जानकर राजा जनमेजय को घोर दुख और तक्षक नाग पर क्रोध आया। उन्होंने हाथ में जल लेकर प्रतिज्ञा की, जिस तक्षक नाग के डसने से पिता की मृत्यु हुई है उससे हर हाल में बदला लेंगे चाहिए इसके लिए कुछ भी करना पड़े। उनके इस संकल्प का मंत्रियों ने भी अनुमोदन किया। 

जनमेजय के पुरोहितों ने दी सर्प यज्ञ की सलाह

मंत्रियों का अनुमोदन सुन कर जनमेजय ने पुरोहितों और ऋषियों को बुलाकर कहा, जिस दुरात्मा तक्षक ने मेरे पिता की हिंसा कर उनका अंत किया है, उससे बदला लेने की मेरी तीव्र इच्छा है। आप लोग कोई उपाय बताइए। क्या आप लोग कोई ऐसा कर्म जानते हैं जिससे मैं उस क्रूर सांप को धधकती आग में भस्म कर सकूं। इस पर यज्ञ करने वाले पुरोहितों ने कहा, राजन आप परेशान न हों, देवताओं ने आपके लिए पहले से ही एक महायज्ञ तय कर रखा है। यह बात पुराणों में भी लिखी है कि इस यज्ञ को आपके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं करेगा। इससे राजा को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा कि मैं उस यज्ञ को अवश्य ही करूंगा आप लोग उसके लिए आवश्यक सामग्री का बंदोबस्त करें और मुझे आज्ञा दें कि क्या करना है।

सर्प यज्ञ कराने के लिए पुरोहित काले वस्त्र पहन कर आए और मत्रोच्चार करते हुए हवन करने लगे इसे देख संसार भर के सर्प डर से कांपने लगे

यज्ञ शुरु होते ही भारी भरकम सर्प होने लगे स्वाहा

वेदज्ञ ब्राह्मणों ने शास्त्रोक्त विधि से मंडप और यज्ञशाला का निर्माण कराया। इसके बाद राजा जनमेजय को यज्ञ के लिए दीक्षित किया। इसी समय एक विचित्र घटना घटी, किसी विद्वान ऋषि ने कहा कि जिस स्थान और समय में यज्ञ मंडप मापने की क्रिया शुरु हुई है, उसे देख कर यह मालूम होता है कि किसी ब्राह्मण के कारण यह यज्ञ पूरा नहीं हो सकेगा। इस जानकारी पर राजा जनमेजय ने यज्ञ स्थल की कड़ी सुरक्षा कराते हुए आदेश दिया कि किसी भी तरह बिना सूचना कोई मनुष्य यज्ञ मंडप में न जाने पाए। तैयारियां पूरी होने के बाद सर्प यज्ञ कराने के लिए पुरोहित काले वस्त्र पहन कर आए और मत्रोच्चार करते हुए हवन करने लगे। इसे देख संसार भर के सर्प डर से कांपने लगे। भारी भरकम, लंबे और दुबले पतले तथा छोटे हर तरह के सांप यज्ञ कुंड में समाने लगे। इनमें बच्चे बूढ़े जवान सभी तरह के सर्प थे। 

तक्षक ने इंद्र के यहां शरण ली

यज्ञ कराने के लिए एक से एक महान ऋषि आए थे और वे नाम ले लेकर हवन कर रहे थे जिसके परिणाम स्वरूप वही भयानक सर्प यज्ञ कुंड में गिर कर भस्म हो रहे थे। सर्पों के जलने से यज्ञशाला और उसके आसपास के वातावरण में भयंकर बदबू उठने लगी। सर्पों की चिल्लाहट तो जोर जोर से वातावरण को और भी भयभीत कर रही थी। डरते हुए तक्षक नाक सीधे देवराज इंद्र की शरण में गया और बोला, मैं अपराधी हूं और आपकी शरण में आया हूं। इस पर इंद्र ने कहा, मैंने तुम्हारी रक्षा के लिए पहले ही ब्रह्माजी से अभय वचन प्राप्त कर लिया है। तुम्हें सर्प यज्ञ से किसी भी तरह से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि तुम्हारा कोई बिगाड़ नहीं होने वाला है। तुम बिल्कुल भी दुखी न हो। इंद्रदेव का आश्वासन सुन तक्षक नाग इंद्रलोक में ही रहने लगा।   

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