Pitru Paksh 2025 : पितृऋण चुकाने का अवसर देता है श्राद्ध, जाने श्राद्ध की तिथि और तारीख

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Pitru Paksh 2025 : आज वैज्ञानिक युग में सभी तेजी से आधुनिक हो रहे हैं, लेकिन श्राद्ध का महत्व कम नहीं हुआ है। यह एक ऐसा संस्कार है, जो हमें अपने पूर्वजों से जोड़ता है और यह याद दिलाता है कि आज जो कुछ भी हैं, वह उनके योगदान का ही परिणाम है। व्यक्ति के जीवन में उनके पूर्वजों ने अहम भूमिका निभाई है और आज जहां भी है उसमें उनकी भी बहुत बड़ी भूमिका है। इस प्रकार, श्राद्ध सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह संस्कारों, परंपराओं और रिश्तों को मजबूती देने का माध्यम है। यह हमें हमारी संस्कृति और मूल्यों से जोड़ता है। श्राद्ध के माध्यम से पितृगणों के प्रति अपना सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करते हैं। उनके योगदान के लिए श्रद्धा और आभार व्यक्त करते हैं। चलिए जानते हैं  श्राद्ध के महत्व और श्राद्ध तिथि के बारे में-

क्या है श्राद्ध

श्राद्ध संस्कार हिंदू धर्म में एक विशेष कर्म है, जिसे पितरों (मृत पूर्वजों) के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर विधि पूर्वक किया जाता है। श्राद्ध का शाब्दिक अर्थ है “श्रद्धा से किया गया कर्म।” शास्त्रों के अनुसार, पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने हेतु जो कर्म किया जाता है, उसे ही श्राद्ध कहा जाता है। शास्त्रों में इसका वर्णन इस प्रकार मिलता है: ‘श्रद्धया पितॄन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्।’ अर्थात श्रद्धा के साथ विधिपूर्वक पितरों के लिए किए गए कर्म को श्राद्ध कहते हैं।

श्राद्ध की विधि और महत्व   

श्राद्ध मुख्य रूप से पितृपक्ष के दौरान किया जाता है, जो आमतौर पर भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है। इस दौरान लोग अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और हवन करते हैं, जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे जीवन के पवित्र कर्तव्यों में गिना जाता है। श्राद्ध की प्रक्रिया में ब्राह्मणों को आमंत्रित किया जाता है और उन्हें भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दी जाती है। इस अवसर पर तिल, जल, कुशा और अन्य पवित्र सामग्रियों का उपयोग होता है। श्राद्ध कर्म का उद्देश्य पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करना और उनके आशीर्वाद से वंश को समृद्ध करना होता है।

श्राद्ध की तिथि

इस वर्ष 7 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है, जबकि इसका समापन सितंबर माह की 21 तारीख को होगा। श्राद्ध मृत्यु तिथि के अनुसार ही करना चाहिए, जिन लोगों को भी अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के बारे में नहीं पता है वह भाद्रपद मास की पूर्णिमा या फिर आश्विन मास की अमावस्या तिथि पर श्राद्ध कर सकते हैं। तिथि अनुसार श्राद्ध करने के लिए श्राद्ध तिथि के बारे में पता होना बहुत जरूरी है। वर्ष 2025 की श्राद्ध सूची इस प्रकार है-

07 सितम्बर, रविवार पूर्णिमा श्राद्ध
08 सितम्बर, सोमवार प्रतिपदा श्राद्ध
09 सितम्बर, मंगलवार द्वितीया श्राद्ध
10 सितम्बर, बुधवार तृतीया श्राद्ध- चतुर्थी श्राद्ध
11 सितम्बर, गुरुवार पंचमी श्राद्ध
12 सितम्बर, शुक्रवार षष्ठी श्राद्ध
13 सितम्बर, शनिवार सप्तमी श्राद्ध
14 सितम्बर, रविवार अष्टमी श्राद्ध, महालक्ष्मी व्रत
15 सितम्बर, सोमवार नवमी श्राद्ध, मातृ नवमी
16 सितम्बर, मंगलवार दशमी श्राद्ध
17 सितम्बर, बुधवार एकादशी श्राद्ध
18 सितम्बर, गुरुवार द्वादशी श्राद्ध
19 सितम्बर, शुक्रवार त्रयोदशी श्राद्ध
20 सितम्बर, शनिवार चतुर्दशी श्राद्ध
21 सितम्बर, रविवार सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध

 

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