Pandu Marriage: धृतराष्ट्र का गांधारी के साथ विवाह कराने के बाद भीष्म को पांडु के विवाह की चिंता हुई। इसी बीच जानकारी मिली की यदुवंशी शूरसेन की पृथा नाम की एक सुंदर कन्या है और वसुदेव इसके भाई थे। शूरसेन की बुआ का लड़का कुन्तीभोज संतान हीन था, तो शूरसेन ने पृथा को उसे गोद दे दिया। कुन्तीभोज के कारण पृथा का नाम कुन्ती भी पड़ गया। कई राजाओं ने कुन्तीभोज के पास उनकी धर्मपुत्री से विवाह का प्रस्ताव भेजा तो कुन्तीभोज ने स्वयंवर का आयोजन किया। स्वयंवर में वीर पांडु भी उपस्थित थे जिनकी वीरता की प्रशंसा कुन्ती ने सुन रखी थी तो उन्हें देखते ही उनके गले में वरमाला पहना दी।
भीष्म ने पांडु का एक और विवाह कराया
विधि विधान से विवाह सम्पन्न होने के बाद राजा पांडु अपनी पत्नी कुन्ती के साथ हस्तिनापुर लौट आए। भीष्म ने पांडु का एक और विवाह करने की इच्छा जताई तो राज्य के मंत्री, ब्राह्मण, ऋषि मुनि आदि के साथ चतुरंगिनी सेना भी मद्रदेश के राजा शल्य के पास गयी और पांडु के विवाह का प्रस्ताव दिया तो उन्होंने प्रसन्नता से स्वीकार किया अपनी यशस्विनी व साध्वी बहन माद्री उन्हें सौंप दी। माद्री के साथ भी पांडु का विधि विधान से विवाह हो गया और पांडु दोनों पत्नियों के साथ सुखपूर्वक रहने लगे।
पृथ्वी दिग्विजय को निकले पांडु
कुछ दिनों के बाद हस्तिनापुर नरेश राजा पांडु ने पृथ्वी पर दिग्विजय करने की ठानी और भीष्म आदि गुरुजनों, बड़े भाई धृतराष्ट्र तथा श्रेष्ठ कुरुवंशियों को प्रणाम कर इस कार्य के लिए आज्ञा प्राप्त की। भारी भरकम सेना के साथ पांडु विजय यात्रा पर निकले तो ब्राह्मणों ने मंगलपाठ कर आशीर्वाद दिया। उन्होंने सबसे पहले अपने पड़ोसी शत्रु राज्य दशार्ण पर चढ़ाई बोली और वहां के नरेश को युद्ध में परास्त किया। इसके बाद मगधराज के यहां चढ़ाई बोली और उन्हें उनके घर में ही घुस कर मार डाला। वहां से बहुत सा खजाना और वाहन आदि लेकर विदेह राज्य पर चढाई कर वहां विजय पताका लहरा दी। इसके बाद काशी, शुम्भ, पुण्ड्र आदि राज्यों पर विजय प्राप्त की। कुछ राजा भिड़े तो मृत्यु को प्राप्त हुए। अन्य सभी ने उन्हें पृथ्वी का सम्राट मान कर बहुत तरह के हीरे-जवाहरात, हाथी-घोड़े आदि भेंट में दिए।
विदुर का भी हुआ विवाह
महाराज पांडु को सकुशल लौटा देख कर भीष्म बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्हें गले से लगा लिया। पांडु ने उन्हें और दादी सत्यवती को बहुत सारा धन भेंट कर प्रसन्न किया। माता के भी आनंद की कोई सीमा न रही। अब भीष्म को दासी पुत्र धर्मात्मा विदुर के विवाह की चिंता हुई, तभी उन्हें जानकारी मिली कि राजा देवक के यहां एक सुंदर युवती दासीपुत्री है। उन्होंने उसे मांग कर परम ज्ञानी विदुर का विवाह करा दिया।