निषाद राज की पुत्री को देख हस्तिनापुर नरेश हुए मोहित, और दिया विवाह का प्रस्ताव
Nishad Daughter : गंगा तट पर हस्तिनापुर नरेश शांतनु एक कुमार की धनुर्विद्या देख आश्चर्यचकित रह गए। पूछताछ करने पर पता लगा कि हर विद्या में पारंगत यह कुमार और कोई नहीं गंगा देवी से उत्पन्न हुआ उनका अपना ही बालक देवव्रत है। गंगा देवी ने स्वयं ही उसे राजर्षि के हाथों में सौंपते हुए कहा कि अब आप इसे ले जा सकते हैं। राजा ने उसका युवराज की गद्दी सौंपी जो शील और सदाचार के लिए जाना जाने लगा।
युवती को देख राजा हुए मोहित
देवव्रत के युवराज के रूप में सुशोभित होने के बाद के चार वर्ष कैसे बीत गए किसी को पता ही नहीं चला। राजर्षि शांतनु एक दिन यमुना नदी के किनारे घूम रहे थे, तभी उन्हें वहां एक ऐसी सुगंध महसूस हुई जो अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। जिस ओर से सुगंध आ रही थी वे उसी ओर चल पड़े। राजा कुछ दूर ही आगे बढ़े थे कि उन्हें निषादों की बस्ती की तरफ अनुपम सुंदरी देवी स्वरूपा युवती दिखाई पड़ी। उन्होंने आगे बढ़ कर उसका परिचय पूछा तो युवती बोली, मैं निषाद कन्या हूं और पिता की आज्ञा से धर्मार्थ नाव चला कर लोगों को एक से दूसरे पार पहुंचाती हूं। राजा उसके रूप, रंग, सुंदरता और वाणी के माधुर्य से इतना प्रभावित हुए कि उसे पत्नी बनाने के लिए उसके पिता के पास याचना करने पहुंच गए।
राजर्षि ने युवती के पिता से उसका हाथ मांगा
निषाद राज को जब पता लगा कि उनकी पुत्री का हाथ मांगने वाला और कोई नहीं, बल्कि हस्तिनापुर राज का राजर्षि है तो उन्होंने कहा, हे राजन ! जब से यह दिव्य कन्या मुझे मिली है, तभी से मैं इसके विवाह के लिए चिंतित हूं। लेकिन इसके संबंध में मेरे लिए एक इच्छा है कि यदि आप इसे धर्मपत्नी बनाना चाहते हैं तो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि आपके समान सत्यवादी और धर्मनिष्ठ योग्य वर मुझे और कहां मिलेगा लेकिन मेरी एक शर्त है जिसकी आपको शपथपूर्वक प्रतिज्ञा करनी होगी।
निषादराज ने राजा शांतनु के सामने रखी अजीब शर्त
राजा शांतनु तो उस युवती के आकर्षण में मोहित हो चुके थे। बोले, पहले आप अपनी शर्त बताएं तभी मैं प्रतिज्ञा के बारे में विचार करूंगा। निषाद राज ने बिना किसी संकोच के शर्त रख दी कि इसके साथ विवाह के बाद इसके गर्भ से जो पुत्र पैदा होगा, वही हस्तिनापुर राज्य का अधिकारी होगा अन्य कोई नहीं। राजा काम वासना से पीड़ित हो चुके थे, फिर भी कोई वचन नहीं दे सके और अचेत व शक्तिशून्य से होते हुए महल में लौट आए।