माद्री ने नकुल तथा सहदेव के रूप में जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया।
Nakul & Sahdev : युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन के जन्म के बाद पाण्डु प्रसन्न तो थे किंतु तीनों पुत्र कुन्ती के गर्भ से हुए थे इसलिए चाहते थे कि माद्री भी उन्हें पुत्र सुख प्रदान करे। पाण्डु ने कुन्ती को बुलाया और कहा कि तुमने तो मुझे पुत्र सुख प्रदान कर प्रसन्न कर दिया है, अब मैं चाहता हूं कि तुम उसी युति का प्रयोग कर माद्री को भी मां बनने का अवसर प्रदान करो। कुन्ती ने उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर माद्री को पास बुलाया और कहा, हे बहन ! तुम केवल एक बार किसी देवता का स्मरण करो, तुम्हें उन्हीं के समान पुत्र प्राप्त होगा।
माद्री ने पुत्र कामना से अश्विनी कुमारों को याद किया
माद्री ने अश्विनी कुमारों का चिंतन किया और कुन्ती ने दुर्वासा ऋषि द्वारा बताए गए मंत्र का उच्चारण किया तो अश्विनीकुमार वहां पर प्रकट हुए और माद्री ने नकुल तथा सहदेव के रूप में जुड़वां पुत्रों को जन्म दिया। उनके जन्म लेते ही आकाशवाणी हुई कि ये दोनों बालक बल, रूप और गुण में अश्विनीकुमारों से भी बढ़कर होंगे। साथ ही ये द्रव्य, संपत्ति और शक्ति से संसार में चमक उठेंगे। सभी बालकों में एक-एक वर्ष का अंतराल रहा। शतश्रृंग पर्वत पर रहने वाले ऋषियों ने पाण्डु को पांच पुत्रों के जन्म पर बधाई और बालकों को आशीर्वाद दिया। बचपन में ऋषि और ऋषि पत्नियां बालकों के प्रति विषेष स्नेह रखती थीं तो पाण्डु भी दोनों पत्नियों और बच्चों के साथ प्रसन्नता से निवास करने लगे।
माद्री को देख पाण्डु अपने को न संभाल सके
वसंत ऋतु में जिस स्थान पर पाण्डु विचरण कर रहे थे, वहीं से हल्के वस्त्रों में माद्री निकलीं तो उनके मुखमंडल की मुस्कान देख पाण्डु के मन में कामवासना जाग्रत हो गयी। उन्होंने माद्री को आलिंगन में भर लिया, माद्री ने पाण्डु को ऐसा न करने की चेष्टा की किंतु वे अपने पर नियंत्रण नहीं रख सके। कामवासना में वे इतना खो गए कि शाप भी भूल गए और जैसे ही संभोग करने लगे, उनकी मृत्यु हो गयी। माद्री उनके शव से लिपट कर विलाप करने लगी। कुन्ती भी पांचों पाण्डवों को लेकर वहां पहुंचीं और माद्री से कहा, हे बहन ! तुम इन बच्चों को संभालो और मैं इनके साथ ही सती होऊंगी क्योंकि मैं इनकी पत्नी हूं। माद्री ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा, मैं अभी युवती हूं इसलिए मुझे ही इनके साथ जाना चाहिए क्योंकि मुझमें आसक्ति के कारण ही इनकी जान गयी है। अब आप अपने तीनों पुत्रों के समान ही मेरे दोनों पुत्र के साथ व्यवहार करना। इतना कह कर माद्री अपने पति साथ चिता में बैठकर सती हो गयी।