MATA SATYAVATI : पाण्डु और माद्री का श्राद्ध करने के बाद कुल के सदस्य और हस्तिनापुर की जनता वापस राजधानी में लौट आई लेकिन अभी भी पाण्डु और उनकी छोटी पत्नी के स्वर्ग सिधारने का दुख कम नहीं हुआ था। वास्तव में पूरा हस्तिनापुर ही दुखी था, किंतु उनमें जो सबसे अधिक दुखी महिला थीं वो दादी सत्यवती उनकी स्थिति तो पागलों जैसी हो गयी थी। अपनी मां की यह दशा व्यास जी से देखी नहीं गयी तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से हस्तिनापुर में होने वाली घटनाओं की जानकारी करने के बाद उनसे कहा, माता ! अब सुख का समय खत्म हो चुका है और भी बुरे दिन आने वाले हैं, पृथ्वी की जवानी जा रही है, दिन पर दिन पापों की वृद्धि होगी।
व्यास जी ने वास्तविकता से अवगत कराया
महाभारत के आदिपर्व में वैशम्पायन ऋषि ने राजा जनमेजय को उनके पूर्वजों की गति बताते हुए कहा कि व्यास जी ने अपनी माता को बताया कि अब हर तरफ छल कपट और दोषों का बोलबाला हो रहा है। धर्म कर्म और सदाचार तो गायब ही होते जा रहे हैं। कौरवों के अत्याचार से भारी संहार की संभावना है इसलिए माता अच्छा होगा कि आप योगिनी पर यहां से निकल जाएं और योग साधना करें अन्यथा अपनी ही आंखों से आपको अपने वंश का नाश होते देखना पड़ेगा जो उचित नहीं है क्योंकि वह आप बर्दाश्त नहीं कर सकेंगी।
माता सत्यवती ने बहुओं को बुला स्थिति बतायी
माता सत्यवती ने व्यास जी की बात पर विश्वास किया और तुरंत ही अम्बिका और अम्बालिका को बुलाकर सारी स्थिति बतायी जो उन्होंने कुछ देर पहले ही अपने पुत्र के मुख से सुनी थी। दोनों ने भी उनके साथ चलने में सहमति जताई तो उन्होंने भीष्म को बुलाकर सलाह की और उनकी अनुमति लेकर वन में तप करने को चली गयीं। उन तीनों ने वन में पहुंच कर घोर तप किया और खाना पीना सब छोड़ दिया जिसके परिणाम स्वरूप उन तीनों ने शरीर का त्याग किया और परलोक सिधार गयीं।