कच ने देवयानी की बात बहुत ही ध्यान से सुनी और विनम्रता के साथ बोला, हे बहन ! भगवान शुक्राचार्य जैसे तुम्हारे पिता हैं वैसे ही मेरे भी हैं।
Marriage Proposal : गुरु शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखने और एक हजार वर्ष तक उनकी और उनकी पुत्री देवयानी की सेवा करने के बाद गुरु से आज्ञा लेकर देवगुरु ब्रहस्पति का पुत्र कच उनके आश्रम से चलने लगा तो देवयानी ने उसे रोक लिया। देवयानी ने कहा, हे ऋषिकुमार ! तुम सदाचार, कुलीनता, विद्या, तपस्या और इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले आदर्श हो। मैं तुम्हारे पिता को अपने पिता के समान ही मानता हूं। मैंने गुरु गृह में रहते हुए तुम्हारे साथ जो और जैसा व्यवहार किया उसे बताने की जरूरत नहीं क्योंकि तुम अच्छी तरह से जानते हो। अब तुम स्नातक हो चुके हो और मैं तुमसे प्रेम भी करती हूं। तुम्हारी सेविका हूं इसलिए तुम मेरे साथ विवाह कर लो।
कच ने स्पष्ट किया कारण
कच ने देवयानी की बात बहुत ही ध्यान से सुनी और विनम्रता के साथ बोला, हे बहन ! भगवान शुक्राचार्य जैसे तुम्हारे पिता हैं वैसे ही मेरे भी हैं। जिन गुरुदेव के शरीर में तुम रह चुकी हो, वहीं मैं भी रह चुका हूं। इसलिए धर्मानुसार तुम मेरी बहन और मेरे लिए पूजनीय हो। गुरु आश्रम में मैं तुम्हारे वात्सल्य की छाया में बहुत ही स्नेह से रहा। अब तुम मुझे घर लौट जाने की अनुमति और आशीर्वाद प्रदान करो। कभी-कभी पवित्र भाव से मेरा स्मरण करना और गुरु की मन लगा कर सेवा करना।
विद्या के सिद्ध न होने का मिला शाप
विवाह के प्रस्ताव से इनकार करने के बाद देवयानी ने कच को जवाब देते हुए कहा, मैने तुमसे प्रेम की भिक्षा मांगी है और यदि तुम धर्म तथा काम की सिद्धि के लिए मुझे अस्वीकृत करोगे तो तुम्हारी संजीवनी विद्या सिद्ध नहीं होगी। इस पर फिर से कच ने देवयानी से आग्रह पूर्वक कहा, बहन, मैने तो गुरु पुत्री मान कर ही तुमसे इनकार किया है, तुम्हारे किसी दोष को देख कर नहीं। मैंने तो तुमसे ऋषि धर्म की बात कही है। जहां तक संजीवनी विद्या की सिद्धि की बात है, इसलिए मैं शाप के योग्य नहीं था। तुमने धर्म के अनुसार नहीं बल्कि काम के वशीभूत होकर शाप दिया है इसलिए तुम्हारी कामना कभी पूरी नहीं होगी। तुमसे कभी कोई ब्राह्मण कुमार विवाह नहीं करेगा।
दूसरों को सिखा कर सफल, होगी विद्या
कच ने आगे कहा, जहां तक विद्या की सिद्धि की बात है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं जिसे भी इस विद्या को सिखाऊंगा, उसकी अवश्य ही सफल होगी। इतना कहते हुए कच वहां से सीधे स्वर्ग पहुंचा जहां पर देवताओं ने अपने गुरु बृहस्पति और उनके पुत्र कच का स्वागत सम्मान किया। देवताओं ने कच को यज्ञ का भागीदार बनाया और आशीर्वाद दिया।