Maihar Devi Temple : मध्य भारत का प्रमुख शक्तिपीठ जहां आदि शंकराचार्य ने की थी मां की आराधना, सदियों से एक योद्धा कर रहा पूजा 

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मैहर तहसील में एक ऐसा शक्तिपीठ है जहां आदि शंकराचार्य ने सबसे पहले मां की आराधना की थी।

Maihar Devi Temple : मध्यप्रदेश के सतना जिले की मैहर तहसील में एक ऐसा शक्तिपीठ है जहां आदि शंकराचार्य ने सबसे पहले मां की आराधना की थी। मान्यता है कि बुंदेलखंड का एक वीर योद्धा जिससे युद्ध भूमि में सभी लोग मात खा जाते थे, ने जंगल में एक पहाड़ी पर बने इस मंदिर में नित्य पूजन शुरु किया जो आज भी अदृश्य रूप से यहां पूजा करने आता है। माता सती द्वारा अग्निदाह करने के बाद जब भगवान शिव माता की पार्थिव देह लेकर क्रोध में तांडव कर रहे थे तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से पार्थिव शरीर के टुकड़े गर दिए जो अंग जहां गिरा वहां शक्तिपीठ बन गया। इस स्थान पर माता के गले का हार गिरा था, मैया के हार शब्द से ही मैहर बना है। 

एमपी के सतना जिले में त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी शक्तिपीठ कहा जाता है

मंदिर का इतिहास

एमपी के सतना जिले में त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी शक्तिपीठ कहा जाता है। यहां पर माता सरस्वती की अवतार मां शारदा की मूर्ति है, मूल मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जंगल में स्थित इस त्रिकूट पर्वत पर कभी मां की मूर्ति स्थापित की गयी थी। यूं ही पड़े इस मंदिर में सबसे पहले आदिगुरु शंकराचार्य ने विशेष पूजा की थी। संवत 502 में निर्मित मैहर के इस पवित्र मंदिर में जगत माता शारदाम्बिका देवी की उपासना की जाती है जिसे मध्य भारत का श्रृंगेरी मठ भी कहा जाता है। यहां पर श्रृंगेरी मठ की पद्धति के अनुसार ही तीन प्रहर की पूजा होती है। मंदिर तक चढ़ने के लिए 1063 सीढ़ियां हैं, अब तो सरकार ने रोपवे भी बना दिया है लेकिन आस्थावान लोग आज भी सीढ़ियां चढ़ कर मां का दर्शन करने जाते हैं। हां जो भक्त इतनी सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ हैं, अब वे भी रोपवे से आसानी से दर्शन को पहुंच जाते हैं। 

बहादुर योद्धा आल्हा से जुड़ाव

मान्यता है कि शाम की आरती होने के बाद जब मंदिर के कपाट बंद करके सभी पुजारी नीचे आ जाते हैं तब यहां मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा की आवाजें आती हैं। कहते हैं कि मां के अनन्य भक्त वीर आल्हा अभी भी पूजा करने आते हैं। पुजारियों के अनुसार सुबह जब कपाट खुलते हैं तब मां की पूजा की हुई मिलती है। दरअसल महोबा के वीर योद्धा और चंदेल राजा परमार के सेनापति थे आल्हा और उनके भाई ऊदल। दोनों बहुत वीर और कुश्ती में निपुण थे। आल्हा खण्ड काव्य में इन दोनों वीरों के 52 युद्धों का रोमांचक वर्णन है। उन्होंने आखिरी लड़ाई पृथ्वीराज चौहान से लड़ी जिसमें आल्हा के भाई की मृत्यु हो गई, इसके बाद तो आल्हा ने ऐसा युद्ध किया कि पृथ्वीराज चौहान हार गए। गुरु गोरखनाथ के आदेश पर आल्हा ने उन्हें जीवनदान दिया। मान्यता है कि आल्हा को मां शारदा का चिरंजीवी रहने और किसी से न हारने का आशीर्वाद प्राप्त था, मां के आदेश पर ही आल्हा ने अपनी सांग जो भाले के आकार का होता है, शारदा मंदिर पर चढ़ाकर नोक टेढ़ी कर दी थी जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर पाया। स्थानीय लोगों के अनुसार दोनों भाइयों ने ही जंगल में मां शारदा देवी के मंदिर की खोज की और 12 वर्षों तक कठोर तप किया। 

नवरात्र में लगता है मेला

वैसे तो इस देवी स्थान पर हमेशा ही श्रृद्धालुओं का आवागमन होता रहता है किंतु चैत्र और शारदीय नवरात्र के अलावा दोनों गुप्त नवरात्रों पर यहां भीड़ उमड़ पड़ती है। नवरात्र पर्व का प्रारम्भ महाअभिषेक से होता है।  इसके बाद चार दिन तक लक्षार्चन एवं देवी माहात्म्य परायण होता है। अंत में नवमी के दिन शतचंडी यज्ञ एवं विद्यारंभ की पूजा होती है। इस दिन लोग अपनी संतान के विद्यारम्भ के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए मैहर आते हैं। इन नौ दिनों में मां शारदा की उपासना महाकाली, ब्राह्मी, महेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, इन्द्राणी, चामुण्डेश्वरी एवं गजलक्ष्मी के रूप में होती है। मंदिर में मां की प्रतिमा के अतिरिक्त काल भैरव, बाल गणेश, हनुमान जी, आदि देवों की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर के मुख्य परिसर से लगभग 2 किमी की दूरी पर आल्हा का मंदिर, तालाब एवं अखाड़ा है जहां दोनों भाई  कुश्ती का अभ्यास करते थे।    

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