Legacy of Kuruvansh : पुरुवंश के राजा हस्ती ने गंगा नदी के तट पर हस्तिनापुर की स्थापना की जो कुरु साम्राज्य की राजधानी बना। यह वर्तमान उत्तर प्रदेश के मेरठ के निकट है। संस्कृत भाषा में हस्तिना हाथी को कहते हैं और पुर का अर्थ होता है नगर। इस तरह हस्तिनापुर का अर्थ हुआ हाथी का शहर। इसी हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी से दुर्योधन सहति 100 कौरव भाइयों का जन्म हुआ था। राजा हस्ती ने नगर बसाने के साथ ही यशोधरा से विवाह किया। उनके विकुण्ठन नामक पुत्र का जन्म हुआ जिसने बड़े होने पर विवाह कर सुदेवा को जन्म दिया। सुदेवा से अजमीढ़ का जन्म हुआ। अजमीढ़ ने कई विवाह किए और उनसे 124 पुत्रों की उत्पत्ति हुई। इन सभी से अलग-अलग वंश निकले जिनमें से भरतवंश के प्रवर्तक का नाम संवरण था।
कुरु वंश का प्रारंभ
संवरण की पत्नी तप्ती के गर्भ से कुरु का जन्म हुआ जिनसे कुरुवंश शुरु हुआ। महाभारत के आदिपर्व में ऋषि वैशम्पायन ने राजा जनमजेजय को उनके पूर्वजों के बारे में बताते हुए कहा कि कुरु की पत्नी शुभांगी से विदूरथ, विदूरथ की पत्नी संप्रिया से अनश्वा, अनश्वा की पत्नी अमृता से परीक्षित, परीक्षित की पत्नी सुयशा से भीमसेन, भीमसेन की पत्नी कुमारी से प्रतिश्रवा, और प्रतिश्रवा से प्रतीप हुए। प्रतीप की पत्नी सुनन्दा के गर्भ से देवापि, शान्तनु और बाह्लीक नाम के तीन पुत्र हुए। देवापि तो बाल्यकाल में ही तपस्या करने वन की ओर चले गए।
विचित्र विशेषता थी इनके स्पर्श की
देवापि के तप करने के कारण दूसरे पुत्र शान्तनु को राजपाट की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। शान्तनु की एक विशेषता थी कि वे जिस किसी को भी छू देते थे उसका बुढ़ापा गायब हो कर जवानी लौटने के साथ ही सुखी हो जाता था। इसी से उनका नाम शान्तनु पड़ा क्योंकि शान्तनु का अर्थ ही है सुख देने वाला। इन्हीं शान्तनु का पुत्र देवव्रत थे, जो महाभारत की कथा में भीष्म के रूप में विख्यात हुए। उनके बारे में कहा जाता है कि वे हस्तिनापुर के सिंहासन के साथ वचनबद्ध थे इसीलिए जानते हुए भी महाभारत के युद्ध में उन लोगों का साथ दिया जो अधर्म के रास्ते पर चल रहे थे।