Lakhna Kalika Devi : इटावा के इस प्रसिद्ध देवी मंदिर की स्थापना त्रेता युग में दशरथ नंदन राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न ने एक राक्षस पर विजय प्राप्त करने के लिए की थी. इटावा के लखना नामक स्थान पर बने इस मंदिर को बाद में स्थानीय लोग लखना देवी के नाम से जानने लगे. मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी व्यक्ति कोई कामना लेकर जाता है उसकी वह मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है. यही कारण है चैत्रीय और शारदीय नवरात्र में मंदिर में लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं.
प्रचलित हैं, दो तरह की कहानी
किवदंतियों के अनुसार मथुरा के राजा एक राक्षस लवणासुर था, जो रावण की ही तरह भगवान शिव का अनन्य भक्त था. उसने कठोर तपस्या कर भगवान शिव से वरदान के रूप में अजेय त्रिशूल प्राप्त किया. इसी त्रिशूल से वह सब लोगों पर अत्याचार करता था. उसके अत्याचार की बात अयोध्या नरेश भगवान श्री राम के पास भी पहुंची तो उन्होंने इस अत्याचारी लवणासुर का वध करने के लिए अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को भेजा. बताते हैं मथुरा पर आक्रमण करने के पहले शत्रुघ्न ने इसी स्थान पर देवी भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए नौ देवियों की स्थापना कर पूजा अर्चना किया था. मां दुर्गा ने प्रसन्न हो कर उन्हें दिव्य अस्त्र प्रदान किए जिसके माध्यम से शत्रुघ्न ने लवणासुर का वध किया, बाद में श्री राम ने उन्हें मथुरा का राज्यभार सौंपा.
दूसरी कथा के अनुसार लखना स्टेट के राजा जसवंत राव बीहड़ क्षेत्र में यमुना के मुहाने पर स्थित प्राचीन मंदिर के उपासक थे. वह नित्य ही यमुना पार कर देवी स्थल पर पूजा अर्चना के लिए जाते थे. बरसात के मौसम में एक बार राव साहब देवी पूजन के लिए जा रहे थे, उन दिनों यमुना में बाढ़ के कारण पानी का तेज बहाव था जिसके चलते मल्लाहों ने नाव चलाने से इनकार कर दिया. देवी दर्शन न कर पाने से दुखी राव साहब ने अन्न जल का त्याग कर दिया. इस पर रात्रि में ही देवी मां ने सपने में उन्हें दर्शन दिए और कहा कि मैं अब तुम्हारे राज्य में ही रहूंगी और लखना देवी के रूप में जानी जाउंगी. तभी राव साहब के सेवकों ने बेरी शाह बाग में देवी के प्रकट होने की जानकारी दी. सूचना पर जब राव साहब वहां पहुंचे तो देखा पीपल का पेड़ जल रहा है और घंटे घड़ियाल की आवाज हो रही है, अग्नि शांत होने पर देवी के नौ स्वरूप देख कर वह प्रसन्न हो गए तब उन्होंने वहां पर 400 फीट लंबा और 200 फीट चौड़ा तीन मंजिला मंदिर बनवा कर उसमें वैदिक रीति से मूर्तियां स्थापित करायी. कुछ लोग बताते हैं कि महारानी किशोरी बाई के कोई औलाद नहीं थी इस मंदिर में आकर मां ने उनकी पुत्र पाने की मुराद पूरी की.
श्रद्धालुओं की पूरी होती है मनोकामना
मान्यता है कि माता के दरबार में जो श्रद्धालु सच्चे मन से अपनी मनोकामना कहता है, महारानी की तरह मां उसकी भी कामना पूरी करती हैं. कहते हैं यहां आने वाला भक्त सुखी होकर ही लौटता है. भक्तों की श्रद्धा और आस्था इतनी अधिक है कि वह कहते हैं नवरात्र में तो मां साक्षात दर्शन देने आती हैं. इसलिए दोनों ही नवरात्रों में मंदिर में लखना इटावा ही नहीं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात आदि राज्यों से भी भक्त आते हैं और सिद्ध पीठ के रूप में दर्शन करते हैं.