ऋषि वैशम्पायन ने राजा जनमेजय को महाभारत कथा की भूमिका बताते हुए कहा कि नारायण ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया तो महाबली बलदेव शेष के अंश थे।
Kuruvansh Promoter : ऋषि वैशम्पायन ने राजा जनमेजय को महाभारत कथा की भूमिका बताते हुए कहा कि नारायण ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया तो महाबली बलदेव शेष के अंश थे। सभी के बारे में सुनने के बाद राजा का ऋषि से प्रश्न था, हे भगवन ! मैं कुरुवंश का प्रारंभ जानना चाहता हूं किसने और किस तरह इस वंश की शुरुआत हुई।
सेना संग राजा पहुंचे घने जंगल
राजा का प्रश्न सुनने के बाद वैशम्पायन जी ने कहा, कुरुवंश का प्रवर्तक परम प्रतापी राजा दुष्यंत था। बहुत बड़े क्षेत्र में था उनका साम्राज्य। उनके राज्य में सभी लोग अपने अपने कार्यों में संलग्न थे और सभी एक दूसरे के साथ प्यार से रहते थे। एक बार राजा अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ एक घने वन में पहुंच गए। वन के अंदर जा ही रहे थे कि मालिनी नदी के तट पर एक बहुत सुंदर आश्रम दिखा। वहां का वातावरण बहुत ही रमणीक था, पशु पक्षी अठखेलियां करते हुए दिख रहे थे। मनमोहक वातावरण देख राजा का लगा मानों वे ब्रह्मलोक में खड़े हों। यह सब देखते हुए राजा ने सेना को छोड़ अपने मंत्रियों और पुरोहितों के साथ आगे बढ़े जहां काश्यप गोत्रीय कण्य ऋषि का आश्रम था।
महर्षि कण्व के आश्रम पहुंचे दुष्यंत
महाभारत ग्रंथ के आदिपर्व के अनुसार आश्रम के कक्ष के बाहर सबको छोड़ कर राजा अंदर गए लेकिन वहां पर सन्नाटा देख आवाज लगाई, यहां कौन है। कुछ ही क्षणों में एक सुंदर कन्या तपस्विनी की वेश में आश्रम से निकली। उसने स्वागत है बोलते हुए राजा को सम्मानपूर्वक आसन दिया जिसमें बैठने के बाद उसका प्रश्न था, मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं। इस पर राजा ने अपने परिचय देते हुए कहा, मैं दुष्यंत हूं और यहां पर महर्षि कण्व के दर्शन करने की कामना से आया हूं। इसके साथ ही उन्होंने युवती से उसका परिचय पूछा।
महर्षि की पुत्री होना आश्चर्यजनक
युवती ने बड़ी ही शालीनता से उत्तर दिया, मेरा नाम शकुन्तला है और मैं ऋषि कण्य की पुत्री हूं। पिता जी पूजन के लिए फूल लेने गए हैं और कुछ ही क्षणों में आते होंगे। उसके जवाब से राजा दुष्यंत का कौतुहल और भी बढ़ गया। उन्होंने कहा पूरे विश्व में वंदनीय महर्षि तो अखंड ब्रह्मचारी हैं फिर उनके पुत्री कैसे हो सकती है।