भारतीय समाज में करवा चौथ का व्रत सौभाग्यवती महिलाओं के बीच अत्यधिक प्रिय और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं अपने पति के स्वास्थ्य, दीर्घायु और सुखद जीवन की कामना करती हैं और पूरे दिन निराहार रहती हैं। करवा चौथ की मान्यता है कि यह व्रत न केवल महिलाओं के सौभाग्य को बढ़ाता है, बल्कि उन्हें शुभ संतान की प्राप्ति का भी आशीर्वाद मिलता है। इस वर्ष करवा चौथ 20 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा।
करवा चौथ की पूजन विधि व्रत रखने वाली महिलाएं प्रातः काल स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं। यह संकल्प पति, पुत्र और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए होता है। करवा चौथ की पूजन में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। शाम के समय, महिलाएं चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न करती हैं, इसके बाद ही जल और भोजन ग्रहण करती हैं। पूजन के अंत में तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सिंदूर, चूड़ियां और सुहाग का सामान रखकर दान किया जाता है, जो सास के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेने के बाद पूर्ण होता है।
करवा चौथ की पौराणिक कथा महाभारत में करवा चौथ व्रत से जुड़ी एक रोचक कथा का उल्लेख मिलता है। शाकप्रस्थपुर के धर्मनिष्ठ ब्राह्मण वेद धर्मा की पुत्री वीरवती की कथा इस व्रत की महिमा को दर्शाती है। विवाह के बाद वीरवती ने अपना पहला करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख के कारण वह अत्यधिक व्याकुल हो गई। उसके भाइयों ने उसे पीपल के पेड़ की रोशनी दिखाकर धोखे से चंद्रमा का भ्रम दे दिया। वीरवती ने उस रोशनी को चंद्रमा समझकर अर्घ्य दिया और भोजन ग्रहण कर लिया। इस व्रत के खंडित होने के कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु से दुखी होकर वह विलाप करने लगी। उसी समय इंद्राणी ने उसे यह बताया कि व्रत टूटने के कारण यह घटना घटी है। इंद्राणी के अनुसार, यदि वीरवती अगले 12 महीनों तक प्रत्येक चौथ का व्रत विधि-विधान से करे और करवा चौथ के दिन शिव परिवार और चंद्रमा की आराधना करे, तो उसका पति पुनः जीवित हो जाएगा। वीरवती ने इंद्राणी के निर्देशानुसार व्रत किया और उसका पति फिर से जीवित हो गया।
करवा चौथ: सौभाग्य और स्वस्थ जीवन की कामना करवा चौथ का व्रत केवल धार्मिक आस्था से भरा हुआ अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह जीवन साथी के साथ एक अटूट प्रेम और सम्मान का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं न केवल अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं, बल्कि यह सुखद दांपत्य जीवन की उम्मीद और संकल्प का भी दिन है।