Jhalrapatan Sun Temple : राजस्थान के इस सूर्य मंदिर का स्थापत्य है देखने लायक, करता है कोणार्क का मुकाबला, धर्म ध्वजा चढ़ाने का होता है उत्सव

0
285
Jhalrapatan Sun Temple, Jhalawar District Rajasthan, Jhalrapatan Tourist Attractions, Sun Temple Jhalawar, Rajasthan Sun Temple, Historic Temples Jhalawar, Jhalrapatan Heritage Sites, Famous Temples Rajasthan, Ancient Sun Temple India, Jhalawar Tourism Places.
Jhalrapatan Sun Temple : राजस्थान का झालावाड़ जिला झालरापाटन भी कहा जाता है, जहां का सूर्य मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है.

Jhalrapatan Sun Temple : राजस्थान का झालावाड़ जिला झालरापाटन भी कहा जाता है, जहां का सूर्य मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है. मंदिर का निर्माण नवीं शताब्दी में मालवा के परमार राजाओं ने कराया था. अपनी प्राचीनता और स्थापत्य वैभव के कारण यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर की याद दिलाता है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा के विराजमान होने के कारण इसे राजस्थान का पद्मनाभ मंदिर, आकार में विशाल होने की वजह से बड़ा मंदिर या सात सहेलियों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. 110 फीट ऊंचे गगनचुंबी शिखर के साथ मंदिर के गर्भगृह में चतुर्भुज नारायण की मूर्ति भी है जिसके कारण इसे चार भुजा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है. पुराणों में भगवान सूर्य देव की उपासना चतुर्भुज नारायण के रूप में की गई है. भारत सरकार के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने राजस्थान के संरक्षित महत्वपूर्ण स्मारकों की सूची में सूर्य मंदिर को प्रथम स्थान दिया है.  देश में सूर्य की सबसे अच्छी एवं सुरक्षित प्रतिमा के रूप में इसे मान्यता मिली है. 

Jhalrapatan Sun Temple Jhalawar District Rajasthan Jhalrapatan Tourist Attractions Sun Temple Jhalawar Rajasthan Sun Temple Historic Temples Jhalawar Jhalrapatan Heritage Sites Famous Temples Rajasthan Ancient Sun Temple India Jhalawar Tourism Places
Jhalrapatan Sun Temple राजस्थान का झालावाड़ जिला झालरापाटन भी कहा जाता है जहां का सूर्य मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है

अद्भुत वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण 

मंदिर की अप्रतिम वास्तुकला अत्यंत महत्वपूर्ण है. मंदिर की भीतरी और बाहरी मूर्तियां शिल्प सौंदर्य की ऊंचाइयों को छूने वाली लगती हैं. मंदिर का ऊर्घ्वमुखी कलात्मक अष्टदल कमल अत्यंत जीवंत और आकर्षक है. शिखरों के कलश और गुम्बदों की आकृति मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला का स्मरण कराती है. कहा जाता है कि राजस्थान के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण नागभट्ट द्वितीय ने विक्रम संवत 872 में करवाया था. झालरों के नगर के नाम से प्रसिद्ध झालरापाटन का हृदय स्थल यहां का सूर्य मंदिर है. अंग्रेज अधिकारी कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक में इस मंदिर का उल्लेख चार भुजा  मंदिर के रूप में किया है. रथ शैली में बने मंदिर में भगवान सूर्य सात अश्वों वाले रथ पर आसीन हैं. मंदिर की आधारशिला भी जुते हुए सात घोड़ों के रथ से मेल खाती है. संपूर्ण मंदिर तोरण द्वार, मंडप, निज मंदिर और गर्भ गृह आदि बाहरी और भीतरी भाग में विभाजित है. 

समय-समय पर चढ़ाई जाती धर्म ध्वजा 

110 फीट ऊंचे सूर्य मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा समय समय पर जीर्ण होने पर चढाई जाती है. 2022 में देवस्थान विभाग व पदमनाभ स्वामी ध्वज सेवा समिति नंदीगण के तत्वावधान में शिखर पर नई ध्वजा चढ़ाई गई थी. धर्म ध्वजा चढ़ाने के लिए विशेष आयोजन किया जाता है. चढ़ाई जाने वाली ध्वजा को लेकर कार्यकर्ता पहले शोभा यात्रा निकालते हैं और फिर भगवान पद्मनाभ की पूजा अर्चना की जाती है. शिखर पर विराजमान भगवान गणपति की पूजा करने के बाद ढोल नगाड़ों की ध्वनि के बीच शिखर पर स्थित 45 फीट ऊंचे ध्वज दंड पर 10 फीट लंबा ध्वज लगाया जाता है. इस दृश्य को देखने के लिए झालारपाटन के श्रद्धालु भारी संख्या में उपस्थित रहते हैं. 

+ posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here