शास्त्रों में चार प्रकार के पुरुषार्थ बताए गए हैं जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं जिन्हें पाने की कामना हर किसी की होती है. हमारे वैदिक ऋषियों ने प्रत्येक कामना को पूरा करने के लिए व्रत और अनुष्ठान बताए हैं, फिर पांच दिनों के इस भीष्म पंचक व्रत की महत्ता तो भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं ही बतायी है. कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होने वाला यह व्रत कार्तिक पूर्णिमा को समाप्त होता है. 2024 में यह व्रत 11 नवंबर सोमवार के दिन रखा जाएगा.
व्रत करने की विधि
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तो वैसे भी बहुत पुण्य वाली मानी गयी है जिस दिन भगवान श्री विष्णु हरि चार माह की योग निद्रा से जागते हैं. इस दिन प्रातः समय से जागने के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर पापों के नाश और धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति का संकल्प लें. कच्चा घर होने पर उसे पहले ही गोबर से लीप लें और यदि आप शहर के पक्के घर में रह रहे हैं, तो झाड़ू पोछा लगाकर अच्छे से साफ कर लें. बाद में आंगन में वेदी बना कर उस पर तिल भर कर कलश स्थापित करें. इस दिन भगवान वासुदेव की पूजा करने के साथ ही पांच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलाएं. दीपक के सामने मौन हो कर बैठ जाएं और ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः का मन ही मन 108 बार किसी माला से जाप करें. बाद में विष्णु का मंत्र बोलते हुए घी, तिल और जौ की 108 आहुतियां देनी चाहिए. पांचों दिन काम, क्रोध त्याग कर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
भीष्म के पांच दिनों के उपदेश पर स्थापित हुआ व्रत
महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर लेटकर इंतजार कर रहे थे. तभी भगवान श्री कृष्ण पांचों पांडवों को साथ लेकर वहां पहुंचे. उपयुक्त अवसर जान धर्मराज युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने की प्रार्थना की. उनकी इच्छा के अनुसार भीष्म पितामह ने राज धर्म, वर्ण धर्म, कर्म, धर्म व मोक्ष धर्म के बारे में महत्वपूर्ण उपदेश दिया. पितामह के उपदेश सुनकर श्री कृष्ण बहुत ही प्रसन्न हुए और कहा, आपने कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों में धर्ममय उपदेश देकर पूरे समाज का उपकार किया है. उन्होंने उसी क्षण उनके नाम पर भीष्म पंचक व्रत को स्थापित करते हुए कहा कि जो भी इस व्रत को करेगा उसके पापों का नाश हो कर कष्टों से मुक्ति मिलेगी और जीवन के भोग भोगने के बाद मोक्ष की प्राप्ति करेगा. इस बार भीष्म पंचक का व्रत 11 नवंबर सोमवार से शुरू होगा और 15 नवंबर शुक्रवार को पूर्णिमा के दिन पूर्ण होगा..