Vedeye Desk
ज्योतिष शास्त्र में बीज बोने, हल चलाने, फसल काटने तथा फसल से अन्न निकालने आदि के शुभ मुहुर्त बताए गए हैं. इन शकुनों का आधार समय-समय पर विभिन्न पशु-पक्षियों द्वारा की जाने वाली चेष्टाएं तथा हवा का रूख, उसकी गति, आकाशीय लक्षण, सूर्य-चंद्रमा का उदयास्त, विभिन्न त्योहार तथा विभिन्न माहों में होने वाले ग्रहण आदि को मानते हैं, इस संबंध में घाघ एवं भड्डरी की कहावतें बहुत प्रसिद्ध हैं. आज हम लोग कुछ ऐसी ही कहावतों को जानेंगे.
सावन पहली पंचमी चंदा छिटके करे.
कै जल दीसै कूप में कै कामिनी शीश धरे..
अर्थात यदि सावन वदी पंचमी को आकाश साफ रहे और चंद्रमा चमकीला हो तो समझ लीजिए कि बारिश नहीं होगी और पानी केवल पनहारिन के सिर की मटकी अथवा कुएं में दिखाई देगा.
आषाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चंद.
गाओ भैया रागनी, होई परम आनंद..
यदि आषाढ़ की पूर्णिमा में आकाश बादलों से ढ़का हो और चंद्रमा बादलों के बीच में घिरा हो तो खुशी के गीत गाने का समय है क्योकि आगे बहुत अच्छी बारिश और अच्छी फसल होगी.
वायु चले ईशान तो, खाना खाये किसान.
ईशान चलेगी वायु तो बारिश अच्छी होगी.
वायु चलेगी उत्तरी तो मांड़ पियंगे कुत्तरा.
अर्थात उत्तर की हवा चलने पर अच्छी बारिश होने से धान की फसल अच्छी होती है. वही दक्षिण दिशा से चलने वाली हवा को केवल माघ और पूस के महीने में ठीक बताया गया है.
जो बरसे स्वाति. चरखा चले न तांती..
यदि वर्षा का आखिरी नक्षत्र स्वाति बरसता है तो कपास की फसल को हानि होती है.
बढ़ते- बढ़ते आर्द्रा उतरे बरसे हस्त.
कितनी राजा डाँह ले रहे आनंद ग्रहस्थ..
यदि आर्द्रा नक्षत्र शुरू होते ही बरसे और उतरते समय हस्त नक्षत्र बरसे तो पृथ्वी धन-धान्य से परिपूर्ण रहती है.
मघा भूमि अघा. मघा न बरसे भरे न खेत. मातु न परसे भरे न पेट..
इस प्रकार मघा नक्षत्र में बारिश होने से भूमि में जल की तृप्ति होती है. जिस प्रकार मां के द्वारा भोजन परोसकर खिलाने से बेटे की तृप्ति होती है.
आर्द्रा तो बरस नहीं,मृगशिर पवन न होय.
काल पड़े कहें भड्डरी,बोओ बीज मत कोय..
इसी प्रकार यदि मृगशिरा में हवा न चले और आर्द्रा में पानी न बरसे तो अकाल पड़ जाता है.
आगे मंगल पीछे भान,पानी पानी रटे किसान..
यदि जिस राशि पर मंगल हो उससे पीछे की राशि पर सूर्य रहे तो पानी नहीं बरसता है.
धनुष पड़े बंगाली. मेह साझ या संकाली
किसान लोग बादल का रंग देखकर इंद्रधनुष का रंग देखकर तथा किस दिन बादल हुए हैं यह देखकर पानी बरसने की संभावना ज्ञात कर लिया करते थे.
शुक्रवार की बादरी रहे शनीचर छाय.
तो यों भाखें भड्डरी बिन बरसे नहि जाय..
ऐसा लगता है कि इन शकुनों को ग्रामीण भाषा के पद्ध के रूप में कहा गया है, जिससे किसान इन्हें याद रख सकें.
पश्चिम दिशा से आए हुए बादल अवश्य बरसते हैं इस बात को एक नीति के साथ जोड़ कर कह दिया गया है.
पछुआ आई बादरी, राँड कुसुम भी जाय.
यह बरसे वह वर करे इनका यही सुभाय..
बादलों की चाल को देखकर भी बारिश का पता लग जाती है.
जो बादरी में खमसे. कहें भड्डरी पानी बरसे..
यदि बादल एक दूसरे में प्रवेश करते हुए मालूम पड़ें तो समझिए बारिश होगी.
कलशा पानी गरम है, चिरियां रहावें धूर.
अंडा ले चींटी चलें तो बरसा भरपूर..
यदि बरसात में मटके में रखा हुआ पानी गर्म हो जाए, चिड़िया धूल में स्नान करने लगें और चीटी अपने अंडों को लेकर बिलों से बाहर आने लगें तो यह अच्छी बारिश होने का संकेत है.
माघ में बादर लाल धरे. तो जानों सच पाथर परे..
यदि माह के महीने में लाल रंग का बादल हो तो निश्चित ही ओले पड़ने की संभावना रहती है.
इतिवार करे धनवंतर होय, सोम करे सवाया फल होय.
बुध, शुक्र, गुरू भरे बखार, शनि, मंगल, बीज न आवे द्वार..
अच्छी फसल के लिए बीज किस दिन बोना चाहिए यदि शनि, मंगल को बोनी प्रारंभ की जाए तो फसल अच्छी नहीं होती.
माघौ मासहि हिम परै, बरसै बिजुली गाज.
समो नीपजै अतिधनो, परजा सुख नृपराज..
माघ के महीने में यदि बिजली चमकती है और ओले पड़ते हैं, यह आगे का फसल के लिए शुभ लक्ष्ण हैं.
जेठ मासै रवि तपै, उष्ण चलत जग वाई.
तौ जानो धन बहु परत, धरती सकै नमाई..
जेठ के महीने का तपना अथवा गर्मी पड़ना अति आवश्यक है. नवतपा भी इसी माह में पड़ता है अर्थात सूर्य रोहिणी नक्षत्र में इसी महीने में आता है.
यह भी कहा गया है – पड़वा तपै जो जेठ की, उपजें सातो मूल.
भादव सुदी की पंचमी, जे घन नहिं बरसंत.
तौ निहच इम जानियो, जलधर हूवो अंत..
यदि भादौं सुदी की पंचमी को पानी नहीं बरसे तो वर्षा का अंत मान लिया जाता है.
कृषकों का मौसम विज्ञान जानने का कितना अनूठा तरीका रहा है. इस प्रकार की भविष्यवाणी को वर्तमान मौसम विज्ञानी भी नहीं कर सकते हैं.
सावन वदी को चौथ संभार. चढ़ै जु रवि बादल मंझार..
तो पैंतालिस दिन लौं मेह. बरसै नित्य न आवे छेह..
यदि सावन बदी चौथ को सूर्य उगते समय बादलों में ही छुपा हुआ निकले तथा दिनभर बादलों में रहे तो 45 दिन तक पानी बरसने की भविष्यवाणी की गई है.
गुरू शुक्र दोऊ मिलै, दस भादौं कर देइ.
कै राजा जूझै घने, के घन बहु बरसै..
यदि बरसात में गुरू और शुक्र एक ही राशि पर आ जाए तो खूब बारिश होती है या देशों के मध्य युद्ध होता है.
माघ महीनै परै न शीत. मूला जेठन तपियो मीत..
आर्द्रा महिं जो बरसै नहीं. लक्षन एह काल की सही..
काल पड़ने का लक्षण इस कहावत में बताया गया है. यदि इन महीनों मे मौसम की यह स्थित बने तो अकाल पड़ता है.
पूरब उत्तर जब लगै, चलत नहीं जग वाइ.
तौलों मेह न भुवि परत, जानो पंडित राइ..
जब तक पूरब और उत्तर की हवा नहीं चलती तह तक पानी नहीं बरसता है.
इस प्रकार प्राचीन समय में विभिन्न प्रचलित कहावतों के माध्यम से किसान मौसम विज्ञान एवं आने वाली फसल का पूर्व आकलन कर लिया करते थे और तदनुसार अपनी व्यवस्था कर लिया करते थे. आज भी इन कहावतों में वर्णित मौसम विज्ञान को प्रभावित करने वाले कारक मौसम विज्ञानियों को शोध का विषय हो सकते हैं. यधपि आधुनिक सभ्यता संस्कृति में पले बढ़े काश्तकार इन कहावतों से अपरिचित एवं अनभिज्ञ लगते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वयोवृद्ध कृषक इन कहावतों को याद रखे हुए हैं और उनसे शुभाशुभ शकुन साधते रहते हैं.