Dharma : भीष्म स्वयं द्रोणाचार्य से मिले और सम्मान पूर्वक महल में लाए, जानिए फिर द्रोणाचार्य ने अपनी गरीबी और पुत्र के बारे में क्या बताया 

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भीष्म ने निश्चय किया कि राजकुमारों को द्रोणाचार्य से ही शिक्षा दिलानी चाहिए। वह तुरंत ही उस स्थान पर पहुंचे और द्रोणाचार्य को ले लाए।

Dharma : खेल के मैदान में कुएं के भीतर गेंद का जाना और फिर ब्राह्मण देवता द्वारा उसे अंगूठी से निकाल देने की घटना राजकुमारों ने नगर में पहुंचते ही पितामह भीष्म को बतायी तो उन्हें समझने में तनिक भी देर न लगी कि ये तो द्रोणाचार्य हैं। उन्होंने निश्चय किया कि अब राजकुमारों को द्रोणाचार्य से ही शिक्षा दिलानी चाहिए। वह तुरंत ही उस स्थान पर पहुंचे और द्रोणाचार्य को ले लाए तथा खूब आदर सत्कार कर हस्तिनापुर में उनके आगमन का कारण पूछा। 

द्रोण ने भीष्म को अपने बारे में बताया

गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त महाभारत के आदिपर्व के अनुसार द्रोणाचार्य ने भीष्म को उत्तर देते हुए कहा, भीष्म जी, जिस समय मैं ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शिक्षा प्राप्त कर रहा था उसी समय पांचाल राज के पुत्र द्रुपद भी हमारे साथ धनुर्विद्या सीख रहे थे। हम दोनों में बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी जिसके चलते द्रुपद ने कहा कि जब वे राजा हो जाएंगे तो मेरा राज्य, संपत्ति और सुख आदि सब तुम्हारे अधीन होगा। उसकी इस बात से मैं बहुत प्रसन्न था। इस बीच शरद्वान मुनि की पुत्री कृपी से मेरा विवाह हो गया और उसके गर्भ से सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र अश्वत्थामा का जन्म हुआ।

द्रोण को अपने जीवन पर क्यों हुआ धिक्कार

द्रोणाचार्य ने अपनी बात को विस्तार से बताते हुए कहा, एक दिन की बात है कि कुछ ऋषि कुमार दूध पी रहे थे क्योंकि उनके पास गायें थीं, उन्हें देख कर अश्वत्थामा भी दूध के लिए मचल गया किंतु मेरे पास गाय तो थी नहीं इसलिए उसे यूं ही समझाने का प्रयास किया। मैंने बहुत कोशिश की किंतु कहीं दूध देने वाली गाय न मिल सकी, आश्रम में लौटा तो देखा दूसरे बालक अश्वत्थामा को आटे का पानी दिखा ललचा रहे थे और दूध से अनजान अश्वत्थामा ने उसे ही पी लिया और प्रसन्नता से बोला कि मैंने भी दूध पी लिया। अपने बच्चे का ऐसा मजाक देख मुझे अपने जीवन पर ही धिक्कार होने लगा।   

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