पाण्डु पुत्र अर्जुन के जीवन में एक ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें अंधेरे में सटीक तीर चलाने को प्रेरित किया।
Dharma : यूं तो अंधेरे में तीर चलाना मुहावरा है जिसे किसी ऐसे व्यक्ति का उपहास उड़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है जो बिना सोचे-समझे और बिना जानकारी लिए कार्य करने लगता है, सामान्य तौर पर ऐसे में परिणाम भी अनिश्चित ही रहता है। वास्तव में पाण्डु पुत्र अर्जुन के जीवन में एक ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें अंधेरे में सटीक तीर चलाने को प्रेरित किया। अर्जुन पूरा मन लगाकर गुरु द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या की बारीकियां सीख रहे थे। ऐसे ही एक रात को दीपक की रोशनी में वह भोजन कर रहे थे कि हवा के झोंके से दीपक बुझ गया और उस कक्ष में अंधेरा हो गया जहां वे भोजन कर रहे थे। उन्होंने अंधेरे में ही भोजन का अगला कौर तोड़ा और उसे हाथ से मुंह तक पहुंचाया तो अर्जुन को समझ में आया कि निशाने पर तीर लगाने का रोशनी से कोई मतलब नहीं है।
अंधेरे में भी अभ्यास करने लगे अर्जुन
अंधेरे में भोजन करने की घटना उनके मन में घर कर गयी और अगले ही दिन से उन्होंने रात के अंधेरे में भी धनुष का अभ्यास शुरु कर दिया। ऐसे ही एक रात अर्जुन ने अभ्यास करने के लिए धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाई तो टंकार सुन कर द्रोणाचार्य उनके पास आए र पूछा क्या कर रहे हो। अर्जुन ने सहजता से उत्तर दिया, गुरुजी ! मैं अंधेरे में भी तीर से लक्ष्य को भेदने का अभ्यास कर रहा हूं। इसके साथ ही अर्जुन ने गुरु द्रोण को भोजन करते समय दीपक बुझने की घटना बतायी।
आचार्य ने अर्जुन को विशेष धनुर्धर बनाने को कहा
गुरु द्रोण अर्जुन की बात से बहुत ही प्रसन्न हुए और बोले, बेटा ! मैं तुम्हें इस तरह से सिखाऊंगा कि संसार में तुम्हारे समान और कोई धनुर्धर ही न हो। आचार्य सभी राजकुमारों को हाथी, घोड़ों, रथ व पृथ्वी पर युद्ध, गदायुद्ध, तलवार चलाने के साथ ही अन्य शस्त्रों का अभ्यास कराते लेकिन अर्जुन का विशेष ध्यान रखते। द्रोणाचार्य के शिक्षा कौशल की बात दूर देशों तक भी फैली तो दूसरे देशों के राजकुमार उनसे प्रशिक्षण लेने के लिए आने लगे।