DHARM VRAT: भगवान श्री राम और जानकी जी के विवाह उत्सव को विवाह पंचमी के रूप में हर साल मार्गशीर्ष माह यानी अगहन महीने में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष यह तिथि 6 दिसंबर शुक्रवार को पड़ रही है. यह भी एक संयोग है कि गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस के लेखन का कार्य इसी तिथि को पूर्ण किया था. इस दिन को घरों में उत्सव के रूप में मनाते हुए विवाहित लोगों को दाम्पत्य जीवन की मर्यादा कायम रखने का संकल्प लेना चाहिए.
तुलसी बाबा ने राम-सीता विवाह का बहुत ही सुंदर वर्णन करते हुए लिखा है,“रघुवर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन। सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन।।” अर्थात जैसे ही जानकी जी ने श्री रघुनाथ जी को जयमाल पहनाई, उनके हृदय में उसे देख कर देवता फूल बरसाने लगे, स्वयंवर सभा मंडप में मौजूद राजा सकुचा गए जैसे सूर्य के देख कर गुलाब के फूलों का झुंड मुरझा जाता है.
विवाह पंचमी की कथा
भगवान शिव के पास एक बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारी पिनाक धनुष था जिसकी टंकार से ही बादल फट जाते पर्वत हिलने लगते थे. पिनाक इसी धनुष से एक तीर चला कर महादेव ने त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त किया था. बाद में उन्होंने यह धनुष देवराज इन्द्र को सौंप दिया और उन्होंने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया. वह धनुष धरोहर के रूप में राजा जनक के पास सुरक्षित रहा. इतने बड़े धनुस को कोई उठा भी नहीं पाता था किंतु जब सीता जी ने बचपन में पूजन के लिए धनुष को बाएं हाथ से उठा कर साफ करती थीं तो इस दृश्य को देख कर ही जनक जी ने निर्णय ले लिया कि जो वीर पुरुष इस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वे अपने बेटी का विवाह उसी के साथ करेंगे. सीता स्वयंवर में एक से एक बड़े राजा धनुष को हिला भी नहीं सके और जनक जी की चिंता बढ़ती देख गुरु विश्वामित्र ने राम को संबोधित करते हुए कहा, “उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापा” और इतना सुनते ही श्री राम बहुत ही शालीनता से उठे और धनुष को प्रेम से उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई तो उसे झुकाते ही धनुष टीट गया. स्वयंवर की शर्त पूरी होने के साथ ही श्री राम और जानकी जी का विवाह संपन्न हो गया.
राम सीता विवाह से सीखने लायक बातें
श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है और उनकी जीवन संगिनी सीता जी का विवाह के बाद पूरा जीवन ही त्याग, समर्पण और विश्वास से भरा हुआ है. उनके जीवन से सीख ली जाए तो आज कोर्ट में पति पत्नी के बढ़ते विवाद ही खत्म हो सकते हैं. दोनों के बीच निस्वार्थ प्रेम रहा. सीता जी ने पति का हर परिस्थिति में साथ देकर सप्तपदी का अक्षरशः पालन किया. राम को वनवास हुआ तो महलों में रहने वाली सीता उनके साथ चलीं. श्री राम के प्रति सीता जी जबर्दस्त भरोसा था. रावण की लंका में रहते हुए भी उन्होंने आस नहीं छोड़ी कि एक न एक दिन के उन्हें लेने के लिए श्री राम आएंगे. दोनों ने वैवाहिक जीवन में निस्वार्थ प्रेम और ईमानदारी का परिचय देकर समाज के सामने श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया.