Dharm : प्राचीन काल में ऋषि आयोदधौम्य नाम के प्रकांड विद्वान थे। उनके तीन प्रमुख शिष्यों में से एक का नाम था उपमन्यु। एक दिन गुरु ने अपने इस शिष्य की योग्यता और गुरुभक्ति की परीक्षा लेने के लिए उसे गायों की रक्षा के लिए जंगल भेजा। दिन भर गायों को चराने के बाद वह आश्रम में लौटा तो गुरु का प्रश्न था, आज तो तुम बहुत मोटे दिख रहे हो, दिन भर भोजन में ऐसा क्या खाया। उपमन्यु ने सरलता से उत्तर दिया, आचार्य जी, मैं भिक्षा मांग कर खा लेता हूं। इस पर गुरु ने समझाया कि गुरु को निवेदन कर बिना उनकी आज्ञा के नहीं ग्रहण करना चाहिए।
शिष्य की लाई, पूरी भिक्षा रखने लगे गुरु
गुरु का संदेश पाने के बाद अब उपमन्यु रोज भिक्षाटन करता और जो कुछ भी प्राप्त होता उसे अपने गुरु को निवेदित कर देता और गुरुवर भी सारी भिक्षा अपने पास रख लेते। ऐसा कई दिनों तक चलता रहा किंतु एक दिन गुरुदेव ने फिर से उपमन्यु से पूछ लिया, बेटा, तुम्हारी सारी भिक्षा तो मैं ही रख लेता हूं, अब तुम दिन भर क्या खाते पीते हो। इस पर शिष्य ने पुनः बहुत सी सरलता से कहा, गुरुवर! पहली भिक्षा आपको निवेदन करने बाद बाद में मैं पुनः भिक्षा लेने निकलता हूं और उसे स्वयं खा लेता हूं। गुरु ने पुनः समझाया कि गुरु के निकट रहने वाले शिष्यों को ऐसा नहीं करना चाहिए।

गायों का दूध पीने से भी रोका
पहले की तरह गुरु उपमन्यु द्वारा लायी गयी सारी भिक्षा अपने पास ही रखते रहे और कुछ दिनों के बाद उन्होंने शिष्य को पास बुला कर बैठाया और पूछा, उपमन्यु, अब तुम क्या खाते पीते हो क्योंकि तुम्हारी पूरी भिक्षा तो मैं रख लेता हूं। तो शिष्य ने सहजता से जवाब दिया कहा, भगवन! इन गायों के दूध से मैं काम चला लेता हूं। इस पर गुरुजी ने कहा, यह भी गलत है क्योंकि ये गायें तो आश्रम की हैं जिन पर मेरा और गाय के बछड़ों का अधिकार है। शिष्य ने उन्हें आश्वस्त किया कि आगे से वह ऐसा नहीं करेगा। कुछ दिनों के बाद फिर गुरुजी ने वही प्रश्न दोहराया तो शिष्य बोला, अपनी मां के थन से दूध पीते हुए बछड़े जो झाग उगल देते हैं, मैं तो उसे ही बाद में ले लेता हूं। गुरुजी पुनः बोले, तुम्हें ऐसा भी नहीं करना चाहिए तो शिष्य बोला आपकी आज्ञा शिरोधार्य।
आक के पत्ते खाने से शिष्य हुआ नेत्रहीन
अब खाने पीने के सारे दरवाजे बंद होने पर भूख से व्याकुल होकर उसने आक के पत्ते खा लिए। इससे उसकी आंखों की रोशनी चली गई और वह दृष्टिहीन होकर जंगल में भटकते हुए एक कुएं में गिर गया। शाम को आश्रम न पहुंचने पर गुरुजी शिष्यों के साथ जंगल में उसकी तलाश में पहुंचे जहां उपमन्यु तुम कहां हो, उपमन्यु तुम कहां हो कह कर पुकारने लगे। इसी बीच एक कुएं से आवाज आई कि गुरु जी मैं यहां हूं। शिष्यों की मदद से उन्होंने उसे निकाला तो उपमन्यु ने गुरुवर को पूरी बात बताई। इस पर गुरुजी ने देवताओं के चिकित्सक अश्विनी कुमारों की स्तुति करने का निर्देश दिया। उसकी भक्ति से प्रभावित हो अश्विनी कुमार प्रसन्न हुए और उन्होंने एक पुआ खाने को दिया किंतु शिष्य ने कहा कि गुरुजी को निवेदन करने के बाद ही वह ग्रहण कर सकता है। इस पर अश्विनी कुमारों ने कहा कि हम तुम्हारी गुरु भक्ति से प्रसन्न हैं। उपमन्यु अपने गुरु धौम्य ऋषि के पास गया और पूरी कहानी बताई तो आचार्य ने प्रसन्न होकर कहा, अश्विनी कुमारों के आशीर्वाद से तुम्हारा कल्याण होगा। उसके नेत्रों को रोशनी आ गई और सारे धर्मशास्त्र भी तुम्हें स्वतः ही याद हो जाएंगे।