कुरुवंश के सम्राट राजा जनमेजय पांडवों में वीर धनुर्धर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पौत्र और महाराजा परीक्षित के पुत्र थे।
Dharm : राजा जनमेजय एक बार अपने तीनों भाइयों श्रुतसेन, उग्रसेन और भीमसेन भाइयों के साथ उसी कुरुक्षेत्र में मैदान में बहुत बड़ा यज्ञ कर रहे थे, जहां पर पांडवों और कौरवों के बीच इतिहास प्रसिद्ध युद्ध हुआ था। कथा में आगे बढ़ने से पहले राजा जनमेजय का पूरा परिचय जानना जरूरी है। कुरुवंश के सम्राट राजा जनमेजय पांडवों में वीर धनुर्धर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पौत्र और महाराजा परीक्षित के पुत्र थे। इन्हीं परीक्षित नंदन राजा जनमेजय जिस समय यज्ञ के हवन कुंड में आहुतियां डाल रहे थे, उसी समय यज्ञ स्थल पर एक कुत्ता आया और एक किनारे पर बैठ गया।
यज्ञस्थल पर कुत्ते को देख पीट-पीट कर अधमरा किया
यज्ञ के मौके पर कुत्ते को देखा तो यज्ञ स्थल की सुरक्षा कर रहे थे, तीनों भाइयों ने कुत्ते को दौड़ाया और पीटने लगे। उसकी चीख पुकार का कोई असर नहीं हुआ। जब पीट कर वे सब थक गए तो छोड़ दिया, कुत्ता रोता बिलखता हुआ अपनी मां के पास पहुंचा तो उसकी दशा देख कर मां को बहुत दुख हुआ, फिर उस मां ने कहा कि जरूर तुमने कोई गलती की होगी तभी तुम्हें इस तरह किसी ने पीटा है कि शरीर में जगह-जगह खून निकल रहा है।
जानकारी पाकर मां को हुआ दुख
महाभारत ग्रंथ के आदिपर्व के अनुसार कुत्ते ने अपनी मां से कहा, एक स्थान पर राजा यज्ञ कर रहा था तो मैं भी वहां चुपचाप किनारे खड़ा होकर वेदमंत्रों को सुन रहा था। उसने स्पष्ट किया कि न तो उसने हवन सामग्री को सूंघा और न ही भोग प्रसाद आदि कुछ चाटा। मां, मैंने कोई अपराध नहीं किया है। पुत्र के मुख से सत्य जानकर मां को और भी दुख हुआ और वह वहां से सीधे जनमेजय के यज्ञ स्थल पर पहुंची।
शाप सुन कर डर गए राजा
उसने जनमेजय के भाइयों से पूछा, मेरे बेटे ने कौन सा अपराध किया जो आप लोगों ने उसे पीट कर दंड दिया। जब कुत्ते की मां को कोई जवाब नहीं मिला तो उसने शाप देते हुए कहा, तुम लोगों ने मेरे पुत्र को बिना किसी अपराध के अकारण ही पीटा है इसलिए तुम लोगों के सामने अचानक ही कोई महान असहनीय दुख आएगा। वास्तव में वो देवताओं की कुतिया थी जिसका शाप सुनकर राजा दुखी होने के साथ घबरा गए।